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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ एक समीक्षा
डॉ. कमलेश कुमार जैन, वाराणसी
प्राच्यविद्याओं के गहन अध्येता महामनस्वी पं. जुगलकिशोर मुख्तार एक सफल सम्पादक, समालोचक, अनुवादक, भाष्यकार, निबंधकार और सहृदय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने बीसवीं शती के पहले दशक से सातवें दशक तक के लगभग सत्तर वर्षों में जो साहित्य-साधना की है, वह अद्वितीय हैं। उन्होंने अपनी लेखनी के द्वारा जहाँ अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया है वहीं विस्तृत भूमिकाओं अथवा प्रस्तावनाओं के माध्यम से ग्रन्थ और ग्रन्थकार पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। साथ ही ग्रन्थ के प्रारम्भ, मध्य अथवा अन्त में उल्लिखित प्राचीन आचार्यों, कवियों, शासकों या उनके उद्धरणों अथवा दूसरे ग्रन्थो या शिलालेखों में प्राप्त तथ्यों या सिद्धान्तों के आधार पर आचार्यों के काल-निर्धारण में जो सयुक्तिक मापदण्डों को प्रस्तुत किया है वह उनके अगाध पाण्डित्य, चिन्तन-मनन एवं शोध-खोज का निदर्शन है।
प्राचीन जैनाचार्यों के प्रति श्री मुख्तार सा. की अनन्य श्रद्धा रही है, अत: उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागर करने के लिये वे सदैव प्रयत्नशील रहे हैं। किसी ग्रन्थ की उत्थानिका अथवा शिलालेख में किसी प्राचीन आचार्य का नामोल्लेख उनकी शोध-खोज का विषय रहा है। इसीलिये उन्होंने 'पुरातन वाक्य सूची' की प्रस्तावना में इन सबका विस्तारपूर्वक विवेचन किया है। श्री मुख्तार सा. द्वारा लिखित उक्त प्रस्तावना अपने लेखनकाल से ही बहुचर्चित रही है और आज भी उसकी प्रासङ्गिकता बनी हुई है। प्राच्यविद्याओं की शोध-खोज में संलग्न प्रायः सभी आधुनिक विद्वानों ने इसका उपयोग कर अपनी शोध-खोज को मूर्त रूप दिया है। ऐसे ही कतिपय नामाङ्कित हस्ताक्षरों का उल्लेख श्री मुख्तार सा. ने अपनी संकलित कृति 'सात्साधु-स्मरणमङ्गलपाठ' के अन्तर्गत किया है।