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240 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer Personality and Achievements स्वामी समन्तभद्र का सम्यक्तया स्मरण करने हेतु अकलंकदेव की अष्टशती, जिनसेन का आदिपुराण, भट्टारक सकलकीर्ति का पार्श्वनाथचरित, भट्टारक सोमसेन का रामपुराण, कवि कृष्णदास का मुनिसुव्रत पुराण, नरसिंह भट्ट की जिनशतक टीका, भट्टारक शुभचन्द्र का पाण्डवपुराण, कवि दामोदर का चन्द्रप्रभचरित, निरुमकुडलु नरसीपुर के शिलालेख, विद्यानन्द की अष्टसहस्त्री, श्रवणबेलगोल के शिलालेख, शुभचन्द्र का ज्ञानार्णव, विजयवर्णी की शृङ्गार्णवचन्द्रिका, वादिराजसूरि का पार्श्वनाथचरित, विद्यानन्द की युक्त्यनुशासन टीका, प्रभाचन्द्र की स्वयम्भूस्तोत्र टीका, हस्तिमल्ल का विक्रान्तकौरव, वीरनन्दी का चन्द्रप्रभचरित, कवि नागराज का समन्तभद्र भारती स्तोत्र, वसुनन्दीसूरि को देवागमवृत्ति, अजितसेन की अलङ्कारचिन्तामणि, ब्रह्म अजित के हनुमच्चरित्र, वादीभसिंह की गधचिन्तामणि, वर्द्धमानसूरि का वराङ्गचरित, वादिराज का यशोधरचरित और शिवकोटि की रत्नमाला से उद्धरण संकलित किये हैं।
इन उद्धरणों में स्वामी समन्तभद्र को कवित्व, गमकत्व, वादित्व और वाग्मित्व - इन चार असाधारण विशेषणों से अलङ्कत किया है तथा भावी तीर्थङ्कर के रूप में प्रतिष्ठित करते हुये उनकी भक्ति के प्रभाव से चन्द्रप्रभ स्वामी की प्रतिभा के प्रकट होने का उल्लेख है।
बेलूर ताल्लुका के शिलालेख नं 17 से ज्ञात होता है कि "श्रुतकेवलियों तथा और भी कुछ आचार्यों के बाद समन्तभद्रस्वामी श्रीवर्धमान महावीर स्वामी के तीर्थ की सहस्रगुणी वृद्धि करते हुये उदय को प्राप्त हुये हैं।" अतः स्वामी समन्तभद्र का जितना भी गुणगान किया जाये कम ही है।
तदनन्तर सिद्धसेन, देवानन्दि-पूज्यपाद एवं पात्रकेसरी का स्मरण करके शास्त्रार्थी अकलङ्कदेव को बौद्धों को बुद्धि की वैधव्य-दीक्षा देने वाला गुरू कहा है। इसके पश्चात् विद्यानन्द, माणिक्यनन्दी, अनन्तवीर्य, प्रभाचन्द्र, वीरसेन, जिनसेन और वादिराज का स्मरण किया है। ___आचार्य समन्तभद्र के प्रसङ्ग में उल्लिखित ग्रन्थों, ग्रन्थकारों एवं शिलालेखों के अतिरिक्त अन्य जिन सन्दर्मों का उल्लेख प्रस्तुत ग्रन्थ में हुआ है, उनमें वादिराजसूरि का एकीभावस्तोत्र, पूज्यपाद को चैत्यभक्ति, कुन्दकुन्द