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समाधितन्त्र प्रस्तावना की समीक्षा
डॉ. रतनचन्द्र जैन, भोपाल
पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार का जन्म आज से 121 वर्ष पहले मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी विक्रमसंवत् 1934 ( ईसवी सन् 1877) को उत्तरप्रदेश के सरसावा कस्बे में हुआ था, जो सहारनपुर जिले में स्थित है।
मुख्तार जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे एक अच्छे कवि, कुशल पत्रकार, क्रान्तिकारी निबन्धकार, निष्पक्ष समीक्षक, दक्ष ग्रन्थसम्पादक, निपुण प्रस्तावना - लेखक, विद्वान् भाष्यकार एवं पटु इतिहासकार थे। उनके व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष यह था कि उन्होंने निष्पक्षता के मैदान में उतरकर सामाजिक रूढ़ियों, अन्धविश्वासों, शिथिलाचारों और विकृतियों पर निर्भीक होकर कुठाराघात किया था ।'
मुख्तार जी ने जिन अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया है उनमें आचार्य पूज्यपादकृत 'समाधितन्त्र' भी है। सम्पादक का एक महत्त्वपूर्ण कार्य होता है ग्रन्थ की प्रस्तावना का लेखन । प्रस्तावना में ग्रन्थकार के जीवन और कृतियों का शोधपूर्ण परिचय देते हुए विवक्षित ग्रन्थ के बहुमुखी पक्षों का उद्घाटन किया जाता है।
'समाधितन्त्र' आचार्य पूजयपादकृत एक आध्यात्मिक ग्रन्थ है। इसकी प्रस्तावना में मुख्तार जी ने सर्वप्रथम ग्रन्थलेखक के स्थितिकाल, पाँचवीं शताब्दी ईसवी का संकेत कर श्रवणबेलगोला के शिलालेखों के आधार पर बतलाया है कि वे तीन नामों से प्रसिद्ध थे: पूज्यपाद, देवनन्दी और जिनेन्द्रबुद्धि देवनन्दी उनका दीक्षानाम था, जिनेन्द्रबुद्धि नाम बुद्धि की प्रकर्षता के कारण आगे चलकर प्राप्त हुआ और लोक में धर्म की पुनः प्रतिष्ठा करने के कारण जब से उनके चरणयुगल देवताओं ने पूजे तब से सुधीजन उन्हें 'पूज्यपाद' नाम से अभिहित करने लगे ।