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प्रभाचन्द्र का तत्वार्थ सूत्र-मेरी दृष्टि में
पं. विजय कुमार शास्त्री, एम.ए.,
___ महावीर जी
जनमानस को आचार्य कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, पात्रकेशरी आदि अनेक जिनवाणी को विस्तार देने वाले प्राचीन आचार्यों एवं उनके द्वारा रचित ग्रन्थों को अपनी खोजपूर्ण लेखनी से परिचय देने वाले, जैन वाड्मय के प्रचार प्रसादमें सतत अपने को तिल-तिल जलाने वाले साहित्य मनीषियों में आचार्य जुगल किशोर मुख्तार साहब का नाम सर्वोपरि है।
आवाल-वृद्ध नर-नारियों में ऐसा कौन है जिसके कण्ठ में राष्ट्रीय, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं व्यक्ति कल्याणकारी उनकी मेरी भावना कण्ठस्थ और हृदयगत हो। मात्र 11 पदों में लिखी गयी यह भावना-मेरी श्री मुख्तार साहब की अपनी तो है ही, अपनी सबकी मेरी है, जो इसे हृदय में सजा ले। सरस, कोमल, प्रसादगुण पूर्ण एवं अनेक आचार्यों के शास्व निविष्ट भावों के स्वरस रुप 'मेरी भावना' रूप कविता से मुख्तार साहब राष्ट्रीय कवियों में उच्च स्थानीय हो गये हैं। धार्मिक कवियों में सिर मौर हो गये हैं। इस मेरी भावना के पद उच्च सांस्कृतिक धारा के प्रवाह हैं मानवता एवं आध्यात्मिकता के स्रोत हैं, उन्नत चेतना के उत्स हैं। सचमुच उनका 'युगवीर' उपनाम सार्थक व सटीक है।
फैले प्रेम परस्पर जग में मोह दूर पर रहा करे। अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहिं कोई मुख से कहा करे ॥ बनकर सब युगवीर हृदय से देशोन्नति रत रहा करे। वस्तु स्वरुप विचार खुशी से सब दुख संकट सहा करे।
मेरा सौभाग्य है कि मुझे श्री मुख्तार साहब जैसे महान साहित्यिक विभूति के सान्निध्य में लगभग एक वर्ष तक कुछ सीखने का अवसर मिला, मेरे जीवन की वह पच्चीसवीं सीढी होगी।