________________
170 Pandit Juga! Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievementes हिन्दी भाषा में निबद्ध "मेरी भावना" उनकी कालजयी रचना है। जिसमें राष्ट्रीयता, सामाजिकता, धार्मिकता की भावना कूट-कूट कर भरी है, सर्वत्र बड़े आदर के साथ इसका पाठ किया जाता है।
संस्कृत वाग्विलास खण्ड की अनेकान्त-जयघोष' स्तुतिविद्या प्रशंसा, सार्थक जीवन, लोक में सुखी तथा वेश्यानृत्य स्तोत्र एक-एक छन्द की रचनाएँ हैं, किन्तु नामानुरूप प्रथम छंद में परमागम के बीजभूत अनेकान्त का जयघोष किया गया है। समन्तभद्र की स्तुति विद्या का गुणानुवाद और उसकी महत्ता प्रतिपादित कर कवि ने अपने भावों को व्यक्त किया है। इसी प्रकार जीवन की सार्थकता व सुखी जीवन के लिये त्याग एवं ममत्व के परिहार को आवश्यक कहकर आत्मशुद्धि की ओर प्रेरित किया है, यही सुखी जीवन का मार्ग भी है
परिग्रहं ग्रहं मत्वा नाऽत्यासक्तिं करोति यः। त्यागेन शुद्धि-सम्पन्नः सन्तोषी भुवने सुखी॥
निःसन्देह पं जुगलकिशोर मुख्तार एक सफल कवि एवं संस्कृत रचनाकार के रूप में अमर रहेंगे। उनका जीवन स्वाध्यायी तपस्वी का था। जिन्होंने निष्पक्षता पूर्वक सामाजिक रुढ़ियों, अन्धविश्वासों, शिथिलाचारों एवं विकृतियों का निर्भीकता के साथ मुकाबला किया। श्रम एवं अध्यवसाय पंडित जी के विशेष गुण थे। उन जैसा सरस्वती उपासक क्वचित् ही दृष्टिगोचर हो? सही मायने में उनका मस्तिष्क ज्ञानी का, हृदय योगी का और शरीर कृषक का था वे कृषक की भांति श्रमशील, मस्तिष्क ज्ञानी के समान विद्वतापूर्ण तथा हृदय योगी की भांति निष्कपट स्वच्छ व गंगा जल की भाँति निर्मल था। उन्होंने ज्ञानज्योति प्रज्जवलित कर श्रुत की ऐसी आराधना की, जिससे ज्ञानियों ने ज्ञान, त्यागियों ने त्याग और लोकसेवा करने वाले ने सेवा का उच्चादर्श प्राप्त किया। २१
डा. ज्योति प्रसाद जी के शब्दों में- "मुख्तार साहब साहित्य के भीष्मपितामह थे।"२२