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पं. जुगलकिस्सेर मुख्पर "बुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
मुख्तार सा. का यह ग्रन्थ जैन वाङ्मय का अनुपम ग्रन्थ है। ग्रन्थ निर्माण से आपने जैन विद्या के क्षेत्र में अनुसन्धान, शोध और पर्यालोचन के दुरूह कार्य को सहज संभाव्य कर दिया है।
सन्दर्भ
1. पुरातन वाक्यसूची-प्रस्तावना पृ.१ 2 जह पउमणरि णाहो, सीमंधर सामि दि काणायेण।
ण विवोहद तो समण्ण कहं समुग्गं पयाणति ॥ दर्शनासार-43 3 तस्यान्वये भूविदिते वभूव यड पद्यनन्दि प्रथमाभिधानः
श्री कौण्डकुण्डादि मुनीश्वराख्यस्सत्संयमादुद्गत चारणार्टिः॥ श्र शि.नं. 40 4 प्रस्तावना पृ. 13 5 वोध पाहुड़ गाथा
द्वेमे, भिक्खवे, बाला। यो च अच्वयं अच्चयतो न पस्सति, __यो चे अच्चयं वेंसेंतस्स तथा धम्म नप्परिग्गण्हाति। भिक्षुओं! दो प्रकार के मूर्ख होते हैं-एक वह जो अपने अपराध को अपराध के तौर पर नहीं देखता है, और दूसरा वह जो दूसरे के अपराध स्वीकार कर लेने पर भी क्षमा नहीं करताहै। [पालि]
-संयुत्तनिकाय (१११२४)
जेण विणा ण विविजइ अणुणिज्जइ सो कावराहो वि। जिसके बिना जीना संभव नहीं, उससे अपराध होने पर भी उसे क्षमा कर देते हैं। [प्राकृत] . -हाल सातवाहन (गाथा सप्तशती, २६३)