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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
अलावा पिच्छी, कमण्डलु, चश्मा आदि मुनियों के लिए तथा चादर/लंगोटी आदि क्षुल्लक व ऐलकों के लिए गर्भित हो जाता है।
'सल्लेखना' को बारह व्रतों में न रखकर इसे व्रतों का फल बताया है। अन्तक्रियाधिकरणं तपःफलं सकलदर्शिनः स्तुवते॥ ___तप का फल (अणुव्रत, गुणव्रत-शिक्षाव्रतादि रूप तपश्चर्या का फल) अन्तक्रिया अर्थात् सल्लेखना/समाधिमरण के आधार पर समाहित है। अर्थात् यदि समाधिपूर्वक मरण बनता है तो तप का फल भी सुघटित होता है अन्यथा उसका फल नहीं भी मिलता। नित्य की पूजा में "दुक्खखओ कम्मखओ समाहिमरणं च वॉहिलाहो वि" की भावना करते हैं। भगवती आराधना आदि जैसे कितने ही ग्रन्थों में इसका विवेचन है।
सम्पूर्ण भाष्य को भाष्यकार ने सात अध्ययनों के अन्तर्गत विभाजित कर सम्पूर्ण ग्रन्थ को सटीक शीर्षक-निबद्ध किया।
प्रथम अध्ययन के अन्तर्गत 'सम्यग्दर्शन' की विशद् व्याख्या 76 पृष्ठों में की। द्वितीय अध्ययन में 'सम्यक्चारित्ररूप अणुव्रतों' का वर्णन किया जो लगभग 33 पृष्ठों में किया गया। समन्तभद्र प्रतिपादित मूलगुणों में श्री जिनसेन और अमितगति जैसे आचार्यों से प्रतिपाद्य मूलगुणों से अन्तर भेद पाया जाता है।
चतुर्थ अध्ययन मे गुणव्रतों का वर्णन विभाजित किया।
पंचम अध्ययनमें शिक्षाव्रतों का विशद रूप से वर्णन किया। यह लगभग २८ पृष्ठों में समाहित है।
छठवें अध्ययनमें सल्लेखना का सांगोपांग वर्णन किया। एवं सातवें अध्ययन में श्रावकपद का वर्णन अर्थात् ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन किया है। दार्शनिक श्रावक तथा व्रतिक श्रावक के लक्षण द्वारा श्रावक पद की महनीयता को व्याख्यापित कर भाष्यकार ने एक-एक शब्द की व्याख्या प्रस्तुत की। जैसे दार्शनिकश्रावक का लक्षण कहते हुए "पंचगुरू-चरण-शरणो"में पंचपरमेष्ठी को गुरू की संज्ञा दी लौकिक गुरूओं को इसमें नहीं लेने को कहा। चरण का एक अर्थ पद-पैर शरीर के नीचे का अंग है परन्तु चरण का दूसरा प्रसिद्ध अर्थ