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पं जुमलकिशोर मुखार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
रत्नकरण्डक समन्तभद्रस्वामी की आचार विषयक महत्वपूर्ण रचना है। इसमें श्रावकों (गृहस्थों) के लिए सत् लक्षणमय धर्मरत्नों का संग्रह किया गया है। टीकाकरण श्री प्रभाचन्द्र जी ने इसे अखिल सागारमार्ग को प्रकाशित करने वाला निर्मल सूर्य कहा है। (अन्तिम प्रशस्ति वाक्य)।
रत्नकरण्डक की टीका प्रभाचन्द्र (प्रायः विक्रम संवत् 13 शती का मध्यकाल) द्वारा रची गई थी। और उन्होंने इसे उपासकाध्ययन कहा है। यद्यपि प्रभाचन्द्र नाम के अनेक आचार्य और पण्डित हुए हैं, परन्तु उनमें से प्रकृत प्रभाचन्द्र 13 वीं शती के विद्वान् हैं। इनके पहले और बाद में भी प्रभाचंद्र नाम के अनेक लेखक विद्वान् हो गये हैं। इन्हें शुभचन्द्र को गुर्वावली में तथा मूल (नंदी) संघ की दूसरी पट्टावली में रत्नकीर्ति का पट्टशिष्य बताया गया है और शुभकीर्ति का प्रपट्टशिष्य कहा है, साथ ही पद्मनन्दि का पट्टगुरू लिखा है। प्रभाचन्द्र को "पूज्यपादीयशास्त्र व्याख्याविख्यात-कीर्तिः"विशेषणके साथ भी स्मरण किया गया है। इससे पता चलता है कि पूज्यपाद देवनन्दि के "समाधितंत्रम्" नामक ग्रन्थ पर,जिसे समाधिशतक भी कहते हैं, प्रभाचन्द्र को जो टीका मिलती है, वह टीका भी इन्हीं प्रभाचंद्रकृत है, क्योंकि दोनों टीकाओं में बहुत सादृश्य देखा जाता है।
प्रस्तुत निबन्ध में प्रभाचन्द्र विरचित रत्नकरण्ड टीका के उद्धरणों का एक संक्षिप्त अध्ययन किया गया है।
जैनाचार्यों व लेखकों ने प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश साहित्य तथा व्याख्या-नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका-साहित्य में अपने मूल सिद्धान्तों की प्रस्तुति, सिद्धान्तों की व्याख्या एवं अन्य मौलिकास्वतंत्र रचनाएं करते समय अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए, प्रमाणित या पुष्ट करने के लिए अथवा उस पर अधिक जोर देने के लिए, जैन एवं अन्य परम्पराओं-जैनेतर परम्पराओं में स्वीकृत सिद्धान्तों, सिद्धान्तगत दार्शनिक मन्तव्यों की समीक्षा करते समय, बहुत से अवतरण उद्धृत किये हैं।
इन उद्धरणों में बहुसंख्या में ऐसे उद्धरण मिले हैं, जिनके मूलस्रोत ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं है। बहुत से ऐसे उद्धरण प्राप्त होते हैं, जो मुद्रित