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समीचीन धर्मशास्त्र - रत्नकरण्ड श्रावकाचार
का भास्वर भाष्य
प्राचार्य निहालचंद जैन, बीना (म.प्र.)
जैन दार्शनिकों में अग्रगण्य स्वामी समन्तभद्र ने एक ओर जहाँ आप्तमीमांसा और युक्त्यनुशासन जैसे महान दार्शनिक-ग्रन्थों का प्रणयन किया, वहीं जीवन और आचार से संबंधित एक अमूल्य दस्तावेज़ "रत्नकरण्डश्रावकाचार" का सृजन करके जैनाचार का शिलालेख लिख दिया है। स्वामी समन्तभद्र ने ऐसे धर्म का उपदेश दिया जो दुःखों से उपरत कर शाश्वत-सुख की ओर ले जाता है। वह धर्म-रत्नत्रय रूप-सम्यक्दर्शनसम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र स्वरूप है। यही समीचीन धर्म है। इसे व्याख्यापित करने वाला शास्त्र, वस्तुतः "समीचीन धर्मशास्त्र" है।।
"समीचीन धर्मशास्त्र" पण्डितप्रवर जुगलकिशोर मुख्तार जी द्वारा लिखा गया रत्नकरण्ड श्रावकाचार पर प्रथम/प्रामाणिक-भाष्य है, जिसे उन्होंने अनेक व्यवधानों और शारीरिक कष्टों के बीच 1953 के अंत में पूरा किया।
पण्डित जुगलकिशोर मुख्तार साहित्य के आलोचनात्मक अध्ययन की परम्परा को स्थापित करने वाले एक युगान्तर संस्थापक माने जाते हैं। डा. मंगलदेव शास्त्री ने आपको उन विरले विद्वानों में परिगणित किया जो शास्त्रों के उपदेशों को जीवन में उतरना चाहते हैं। पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी ने उनकी सृजनधर्मिता पर अभिमत व्यक्त करते हुए लिखा था- ८२ वर्ष की उम्र में आप जितना काम कर ले जाते हैं उतना अनेक युवक भी नहीं कर सकते।
समीचीन धर्मशास्त्र पर पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी जी ने सम्मति देते हुए लिखा कि यह महान् ग्रन्थ श्री समन्तभद्र स्वामी का जैसा रत्नों का पिटारा है उसी प्रकार इसको सुसज्जित/विभूषित करने वाले हृदयग्राही विद्वान् का भाष्य है। डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने अपने प्राक्कथन में इसे अनुपम कृति बताते हुए