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188 Pandit Jugal Kishor Mukhtar Yugveer" Personality and Achievements भगवान महावीर के अनुयायी अपनी इस भूल को समझ जायेंगे और वे अपनी संतान को धूर्त ग्रन्थकारों के चंगुल में नहीं फंसने देंगे।"
(स्व ) पं नाथूराम प्रेमी के द्वारा "ग्रन्थ परीक्षा द्वितीय भाग" के प्रकाशकीय वक्तव्य के उक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि माननीय मुख्तार साहब ने निर्भीक होकर अपने अनुपम साहस के द्वारा ग्रन्थों के नकली रूप को जाना और डंके की चोटपूर्वक उन्हें जाली सिद्ध किया। "ग्रन्थ-परीक्षा" द्वितीय भाग में :
"भद्रबाहु संहिता" ग्रन्थ की परीक्षा अंकित है। जैन समाज में, भद्रबाहु स्वामी एक बहुत प्रसिद्ध आचार्य हो गये हैं। ये पांचवें श्रुतकेवली थे। "श्रुतकेवली" उन्हें कहते हैं जो सम्पूर्ण द्वादशांग श्रुत के पारगामी हों उसके अक्षर-अक्षर का जिन्हें यथार्थ ज्ञान हो। दूसरे शब्दों में यों कहना चाहिये कि तीर्थंकर भगवान की दिव्यध्वनि द्वारा जिस ज्ञान-विज्ञान का उदय होता है, उसके अविकल को "श्रुतकेवली" कहते हैं। आगम में सम्पूर्ण पदार्थों के जानने में "केवली" और "श्रुतकेवली" दोनों ही समान रूप से निर्दिष्ट हैं। भेद है सिर्फ प्रत्यक्ष-परीक्षा का अथवा साक्षात्-असाक्षात् का केवली अपने केवलज्ञान द्वारा सम्पूर्ण पदार्थों को प्रत्यक्ष रूप से जानते हैं और श्रुतकेवली अपने स्याद्वादालंकृत श्रुतज्ञान द्वारा उन्हें परोक्ष रूप से अनुभव करते हैं। आचार्य समन्भद्र स्वामी कृत आप्तमीमांसा की दसवीं कारिका से भी हमारे उक्त विवेचन की पुष्टि होती है।
उक्त विवेचन से सुस्पष्ट है कि संपूर्ण जैन समाज में आचार्य भद्रबाहु श्रुतकेवली का आसन बहुत ऊँचा है। ऐसे महान् विद्वान् और प्रतिभाशाली आचार्य द्वारा प्रणीत यदि कोई ग्रन्थ उपलब्ध हो जाय तो वह निःसन्देह बड़े ही आदर और सत्कार की दृष्टि से देखे जाने योग्य है और उसे जैन समाज का बहुत बड़ा सौभाग्य समझना चाहिए।
"ग्रन्थ परीक्षा" द्वितीय भाग में पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" ने जिस ग्रन्थ की परीक्षा/समीक्षा की है उसके नाम के साथ "भद्रबाहु" का