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पं जुगलकिशोर मुखतार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
प्रस्तुत लेख में "पुरातन जैन वाक्य सूची" अपर नाम जैन प्राकृत पद्यानुक्रमणी का अध्ययन प्रस्तुत हैं। अस्मत्सदृश अल्पज्ञ विद्यार्थी द्वारा वाङ्मयाचार्य प्रणीत वैदुष्यपूर्ण उक्त ग्रन्थ का अध्ययन प्रस्तवन लघुनौका द्वारा सागर-तरण सम कार्य ही है।
अध्येय ग्रन्थ "पुरातन जैन वाक्य सूची" में प्राकृत एवम् अपभ्रंश के 63 ग्रन्थरत्नों की कारिकाओं/गाथाओं/पद्यों की प्रथम चरण/चरणार्द्ध की अकारादिक्रम क्रम से अनुक्रमणिका निबद्ध है इस अनुक्रमाणिका में मुख्तार सा. के सूचीकरण कार्य में डॉ. पं. दरबारी लाल जी कोठिया एवम. पं. श्री परमानन्द जी शास्त्री भी सहायक संपादक रहे हैं।
इस ग्रन्थ का अपरनाम प्राकृत पद्यानुक्रमणी है पर इसमें अपभ्रंश भाषा निबद्ध परमप्पयासु, जोगसार, पाहुड दोहा, सावयधम्म दोहा, सुप्पह दोहा इन पांच ग्रन्थों के पद्यों को भी सम्मिलित किया गया है और स्वयं मुख्तार सा. ने कारण बताते हुए लिखा है अपभ्रंश भाषा भी प्राकृत का ही एक रूप है।' प्राकृत ग्रन्थ में षट्खण्डागम ग्रन्थ के सूत्रों को सम्मिलित किया गया है, जो कि पद्यबद्ध हैं। (जिनकी पद्यबद्धता का परीक्षण मुख्तार सा. की प्रज्ञा ने किया) अतः कुल ग्रंथ 64 हो जाते हैं। परिशिष्ट में टीकादि ग्रन्थों में "उक्तंच" करके उद्धृत पद्यों की सूची भी प्रस्तुत की गयी है, तथा जिन पद्यों का आधार मुख्तार सा. खोज सकें, उनका सन्दर्भ प्रस्तुत किया, शेष को अद्यावधि अज्ञात
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पद्यानुक्रमणी में कुल 25352 पद्य संगृहीत हैं जिनमें से 24608 के सन्दर्भ गहन अन्वेषण यहाँ प्रस्तुत हैं।
प्रकृत ग्रन्थ में सूची से पूर्व रायल एशियाटिक सोसायटी बंगाल के महामन्त्री श्री कालीदास नाग का FORWORD एवम् डॉ. प्रो. ए. एन. उपाध्ये के Introduction के साथ ग्रन्थ की महिमा में चार चांद लगाने वाली गहन अध्यवसायपूर्ण, गवेषणात्मक और विस्तृत प्रस्तावना है, जो गुणत्मक एवम् परिमाणात्मक इस प्रस्तावना में संकलित पध ग्रन्थ और उनके ग्रन्थकारों पर गवेषणापूर्ण तथ्यात्मक जानकारी एवम् शोधपूर्ण सामग्री सुलभ कराते हैं।