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पं जुगलकिशोर मुख्कार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
दिशाओं को हर्षविभोर बना दिया था। उन्होंने युग की नाड़ी को परखा था, इसीलिए दिगम्बर जैन परम्परा का मौलिक रूप अक्षुण्ण रखने के लिए उन्होंने एक नयी दिशा और नया आलोक पूर्ण मार्ग प्रशस्त किया। इस कालजयी युगान्तरकारी कृतिकार वाङ्मयाचार्य पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" को और उनकी स्मृतिकर्ताओं को कोटि-कोटि नमन ।
यः समुत्पतितं कोपं क्षमयैव निरस्यति । यथोरगस्त्वचं जीर्णां स वै पुरुष उच्यते ॥
जो मनुष्य अपने उत्पन्न क्रोध का क्षमा द्वारा उसी प्रकार निराकरण कर देता है जिस प्रकार सर्प पुरानी केंचुली का, वही सच्चा पुरुष कहा जाता है।
मूढस्य सततं दोषं क्षमां कुर्वन्ति साधवः ।
सज्जन मूर्ख के दोष को सदा क्षमा कर देते हैं ।
क्षमा हि मूलं सर्वतपसाम् ।
क्षमा तो सब तपस्यायों का मूल है।
-मत्स्यपुराण (२८/४)
क्षमाधनुः करे अतृणे पतितो
यस्य
- बाणभट्ट (हर्षचरित, पृ. १२)
यहि :
- ब्रह्मवैवर्तपुराण
दुर्जनः किं
करिष्यति ।
स्वयमे वो पशाम्यति ।
जिसके हाथ में क्षमारूपी धनुष है, दुर्जन व्यक्ति उसका क्या कर लेगा ? अग्नि में तृष्ण न डाला जाए, तो वह स्वयं ही बुझ जाती है।
-अज्ञात