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पं. मुगलकिशोर मुख्तार "पुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
खण्ड के फल नामक नौवें अध्याय के अनेक पद्यों का रत्ननन्दिकृत 'भद्रबाहुचरित' से साम्य है (दे. पृ. 34 से 36) रत्ननन्दि के भद्रबाहुचरित की रचना 16 वीं सदी में हुई क्योंकि उसमें ढूंढ़िया मत (लुकामत) की उत्पत्ति का उल्लेख है। 'ताजिक नीलकण्ठी' प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ है। इसके रचनाकार का समय विक्रम की 17 वीं सदी का पूर्वार्द्ध है । भद्रबाहु संहिता के दूसरे खण्ड के 'विरोध' नामक 43 वें अध्याय में कुछ परिवर्तन के साथ ताजिक नीलकण्ठी के बहुत से पद्य ले लिये गये हैं केवल उसके अरबी-फारसी के शब्दों का संस्कृत रूपान्तरण कर दिया है।
उपर्युक्त विश्लेषण के माध्यम से माननीय पंडित जगलकिशोर जी मुख्तार ने यह प्रमाणित करने का उपक्रम किया है कि यह खण्डवयात्मक भद्रबाहुसंहिता ग्रंथ भद्रबाहुश्रुतकेवली की रचना नहीं है और न उनके शिष्यप्रशिष्य की ही रचना है। और फिर झालरापाटन के शास्त्र भण्डार से प्राप्त इस ग्रंथ की हस्तप्रति विक्रम संवत् 1665 की है। अतः भद्रबाहु संहिता का रचनाकाल 1665 ई. के पूर्व और 1657 के पश्चात् प्रमाणित किया है।
इस आलेख के लेखक का सुस्पष्ट मत है कि भद्रबाहु संहिता श्रुतकेवली भद्रबाहु की रचना नहीं है। वह 17 वीं शती के किसी रचनाकार की संगृहीत रचना है। पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" का व्यक्तित्व और वैदुष्य :
पं. मुख्तार साहब का व्यक्तित्व "नारिकेल-फल-सदृशं" था। सामाजिक दायित्वों की रक्षा हेतु कठोर कदम उठाने के लिए तैयार किन्तु स्वभाव में नवनीत की भांति थे। आपमें आचार्य पं. महावीरप्रसाद द्विवेदी जैसी निर्भीकता और पं. सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जैसी अक्खड़ता थी। सरस्वती के इस वरदपुत्र ने लेखन, सम्पादन और कविता प्रणयन द्वारा भगवतीश्रुत देवता का भण्डार समृद्ध किया। श्रम और अध्यवसाय जैसे गुण आपके व्यक्तित्व में सहज अनुस्यूत थे। संक्षेप में कह सकते हैं कि पण्डित जुगल