________________
196
Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer Personality and Achievements
-
किशोर मुख्तार "युगवीर" का मस्तिष्क ज्ञानी का,हृदय योगी का, और शरीर कृषक का था।
आपके व्यक्तित्व और वैदुष्य का सम्यक् मूल्यांकन अनेक प्रसंगों में किया गया। वीर शासन महोत्सव के अवसर पर कलकत्ता में उन्हें "वाङ्मयचार्य" की उपाधि से विभूषित किया गया। पूज्य संत श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी, पण्डित नाथूराम प्रेमी, ब्र. पं. चन्द्राबाई आरा, साहू शांतिप्रसाद जी, डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य आदि ने मुख्तार साहब के अगाध पाण्डित्य और ज्ञान साधना की भूरि-भूरि प्रशंसा की। डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ने आपको साहित्य का भीष्मपितामह कहा है। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने डॉ. ज्योतिप्रसाद जी कि कथन में कुछ पंक्तियाँ और जोड़ते हुए लिखा है कि वे साहित्य के पार्थ हैं जिन्होंने अपने बाणों से भीष्म पितामह को भी जीत लिया था, पर अपने विनीत स्वभाव के कारण वे भीष्म के भक्त बने रहे।
वस्तुतः "युगवीर" यह उनका उपनाम बहुत ही सार्थक और सारगर्भित है। वे इस युग के वास्तविक "वीर" है, स्वाध्याय, वाङ्मय निर्माण, संशोधन, सम्पादन प्रभृति कार्यों में कौन ऐसा वीर है, जो उनकी बराबरी कर सकें? वे केवल युग निर्माता ही नहीं युग संस्थापक ही नहीं, अपितु युग-युगान्तर निर्माता और युग-युगान्तरों के संस्थापक हैं। उनके द्वारा रचित विशाल वाङ्मय वर्तमान और भविष्य दोनों को ही प्रकाश प्रदान करता रहेगा। वस्तुतः साहित्यसृजन की दृष्टि से मुख्तार जी के व्यक्तित्व की तुलना यदि किसी से की जा सकती है तो वह है महाकवि व्यास।
वाङ्मयाचार्य पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" जितेन्द्रिय, संयमी, निष्ठावान् एवं ज्ञानतपस्वी मनीषी थे। इस युग-विभूति ने लोक सेवा और साहित्यसेवा द्वारा ऐसे ज्ञान-मंदिरों का निर्माण किया जो युग-युगान्तर तक संपूर्ण दिगंबर जैन संस्कृति को संजोए रहेगी। उनका जीवन निष्पक्ष दीपशिखा के सामन तिल-तिल कर ज्ञानप्राप्ति के लिए जला और वे एक ज्ञानी, समाज सुधारक, दृढ़ अध्यवसायी एवं साधक तथा पाण्डुलिपियों के अध्येता ही नहीं, प्रत्युत "वे आँगन की तुलसी का वह पौधा" हैं, जिनकी सुरभि ने सभी