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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements
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तक सम्पन्न करते रहे। इसके पश्चात् सुप्रतिष्ठित मासिक शोध पत्र "अनेकान्त" का सम्पादन एवं प्रकाशन समन्तभद्र आश्रम की स्थापना के पश्चात् आपने प्रारंभ किया और आजीवन उसके संस्थापक सम्पादक/प्रकाशक रहे। समीक्षक एवं ग्रन्थ परीक्षक पं.जुगलकिशोर "मुख्तार" और समीक्ष्यकृति "ग्रन्थ परीक्षा" द्वितीय भाग :
किसी वस्तु-रचना अथवा विषय के संबंध में सम्यक्ज्ञान प्राप्त करना तथा प्रत्येक तत्त्व का विवेचन करना "समीक्षा" है। और जब साहित्य के संबंध में उसकी उत्पत्ति, विविध अंग, गुण-दोष आदि विभिन्न तत्त्वों और पक्षों के संबंध में समीचीन आलोडन-विलोडन कर विश्लेषण किया जाता है तो उसे "साहित्य-समीक्षा" कहते है। साहित्य के विविध तत्त्वों और रूपों का स्वयं दर्शन कर दूसरों के लिए ग्राह्य बनाना ही समीक्षक का कार्य होता है।
प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" के साहित्यिक जीवन का प्रारंभ "ग्रन्थ-परीक्षा" और "समीक्षा" से ही आरंभ होता है उन्होंने अत्यधिक श्रम, साधना और साहसपूर्वक युक्ति, आगम और तर्क परस्पर समीक्ष्य ग्रन्थों के नकली रूप को उजागर कर डंके की चोट से उन्हें जाली सिद्ध किया। उन जैसा ग्रन्थ के मूल स्रोतो का अध्येता एव मूल सदों का मर्मज्ञता बिरला ही कोई समीक्षक होता है। वे ग्रन्थ के वर्ण्य-विषय के अन्तस्तल में अवगाहन करके उसके मूल-स्रोतों की खोज करते हैं, उनका परीक्षण करते हैं और तत्पश्चात् उनकी प्रामाणिकता का निर्धारण करते हैं। आचार्य पं जुगलकिशोर मुख्तार द्वारा प्रणीत "ग्रन्थ-परीक्षा" कृतियाँ समीक्षा-शास्त्र की दृष्टि से शास्त्रीय मानी जायेगी। यद्यपि उनमें ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, निर्णयात्मक एवं तात्विक समीक्षा के रूपों का भी मिश्रण पाया जाता है। उनके द्वारा प्रणीत "ग्रन्थपरीक्षा" के अन्तर्गत जितने ग्रन्थों को प्रमाणिकता पर विचार किया गया है वे सभी ग्रन्थ समीक्षा के अन्तर्गत ही आते हैं। ग्रन्थ परीक्षा : प्रथम भाग
आचार्य पं जुगलकिशोर मुख्तार ने "ग्रन्थ-परीक्षा'' शीर्षक ग्रन्थ जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, हीराबाग, पोस्ट-गिरगाँव, बम्बई से प्रकाशित कराया