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पं. दुमलाकिस्सेर मुखतर "बुमवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
परिग हे स्वनासको नेलिनेव द्रोहवान् । न्याय-मार्गाऽच्युतो जैनः समश्च सुख-दुःखयो ५
अर्थात् जैनी अनेकान्त स्याद्वादवादी, विरोध को समाप्त करने वाला, समता परिणामी, दया-दान से युक्त, सत्यपरायण सुशील और सन्तोषवृत्ति वाला होता है। सुख-दुःख में समताभावी, न्यायमार्गी, परिग्रह से अनासक्त भाव धारण करता है। राग-द्वेष और मोह से पराङ्माख एवं स्वाध्यायी जैनी के प्रमुख गुण हैं।
मुख्तार साहब की 'जैन आदर्श' संस्कृत रचना के पद्य उनकी राष्ट्रीय कविता 'मेरी भावना' से भी समानता रखते हैं -
मेरी भावना का छन्दजिसने राग-द्वेष-कामादिक, जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्षमार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया॥६ साम्य-जैन आदर्श का पधराग-द्वेषाऽवशी जैनो जैनो मोहपराङ्मुखः। स्वात्म-ध्यानोन्मुखो बैनो, जैनो रोष-विवर्जितः॥ १० मेरी भावना का छन्दविषयों की आशा नहिं जिनके साम्यभावधन रखते हैं। निज-पर के हित साधन में जो, निशदिन तत्पर रहते हैं। साम्य जैन आदर्श रचना सेकर्मेन्द्रिय-जयी जैनो, बैनो लोकहिते रतः। जिनस्योपासको जैनो, हेयाऽऽदेय-विवेक-युक्॥९
मुख्तार साहब की रचना चाहे संस्कृत की हो या हिन्दी की, उन्होंने कोमलकान्त पदावलि का ही प्रयोग किया है, यही कारण है कि मुख्तार साहब के भावों को हृदयगंम करने में किसी को भी कठिनाई नहीं होती।