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174 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
'मीन-संवाद' के अन्तर्गत प्रकट विचारों में मुख्तार सा. कहते हैं कि मीन की परिस्थिति बड़ी कारुणिक है। मीन को किसी धीवर ने अपने जाल में फंसा लिया है। कवि हृदय मीन से प्रश्न करता है कि - हे मीन! इस समय इस जाल में तूं फंसा हुआ क्या सोच रहा है? क्या तू देखता नहीं है कि तेरी मृत्यु का समय निकट है। अब तू ऐसा फँसा है कि इससे बचने का कोई उपाय दिखलाई नहीं दे रहा है, अतः मृत्यु अवश्यम्भावी है।
किसी भी सज्जन व्यक्ति द्वारा दुःख में पड़े प्राणी से हमदर्दी जताने पर दुःखी व्यक्ति अपना दर्द दूसरों को सुनाकर अपनी व्यथा प्रकट करता है उसी प्रकार मत्स्य यह जानते हुये भी कि अब मृत्यु के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है, फिर भी अन्यायी व्यक्ति को अन्यायी के रूप में लोग जान सकें । देख सकें और दूसरे लोग उससे सावधान रहें, इसलिये अपनी कथा व्यथा को प्रकट करते हुए मत्स्य कहता है कि - मैं केवल यही सोच रहा हूँ कि मेरा अपराध क्या है? यदि सचमुच में मुझसे कोई अपराध बन गया हो तो बेशक मुझे उसका दण्ड मिलना ही चाहिये, किन्तु जहाँ तक मेरी दृष्टि जाती है वहाँ तक बहुत सोचने पर भी मुझे अपना कोई अपराध दिखलाई नहीं देता है।
अपराध के कारणों पर विचार करते हुये मत्स्य सोचता है कि सामान्यतया शास्त्रों में पाँच प्रकार के पापों का उल्लेख किया गया है - हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह । सो इनमें से मैंने एक भी पाप नहीं किया है, जिससे किसी मानव मात्र के प्रति मेरा अपराध बन गया हो और यह धीवर वेशधारी मनुष्य मुझे अपने जाल में फंसाकर मेरा बध करके मुझे मेरे अपराध का दण्ड देना चाहता हो। किन्तु मैं मानव मात्र को कष्ट नहीं देता हूँ। इसलिये हिंसारूप पाप करने का कोई प्रश्न ही नहीं है। धन-धान्य मैं किसी का चुराता नहीं हूँ, जिससे चौर्य कर्म का अपराधी नहीं हूँ। मैंने कभी असत्य/झूठ नहीं बोला है, बोल भी नहीं सकता हूँ। यदि कोई यह कहे कि इन पापों की बात छोड़ो, परन्तु कभी किसी स्त्री को बुरी निगाह/वासना की दृष्टि से तो देखा होगा। सो प्रभो! पर-वनिता पर मेरी आज तक दृष्टि नहीं गई है। अब बात रह जाती है परिग्रह पाप की। सो मुझे जहाँ तक ज्ञात है,मैंने कभी किसी वस्तु पर अपना अधिकार नहीं जताया है। मानवगत ईर्ष्या या घृणा रूप कोई खोटी प्रवृत्ति भी मुझमें नहीं