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जुगलकिशोर मुखार "पुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
"ग्रन्थ परीक्षा" के प्रथम भाग में उमास्वामी-श्रावकाचार, कुन्दकुन्द श्रावकाचार, और जिनसेन त्रिवर्णाचार इन तीन ग्रन्थों की परीक्षा की गई है और इन तीनों ग्रन्थों को जाली सिद्ध किया गया है।
उमास्वामी और कुन्दकुन्द ने अलग से कोई श्रावकाचार ग्रन्थ नहीं रचे हैं। भट्टारकों ने अपने शिथिलाचारी विचारों को पुष्ट करने की भावना से उमास्वामी तथा कुन्दकुन्द सरीखे विद्वानों का नाम लिखकर ग्रन्थ लिखे ताकि वे प्रामाणिक माने जावे। नकली वस्तु कभी असली नहीं हो सकती है अतः यह सिद्ध है कि उमास्वामी, कुन्दकुन्द एवं जिनसेन के नाम पर लिखे गये श्रावकाचार उनके मूल ग्रन्थों कैसी श्रेष्ठता प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
एकः क्षमावतां दोषो द्वितीयो नोपपद्यते
यदेदं क्षमया युक्तमशक्तं मन्यते जनः।
सोऽस्य दोषो न मन्तव्यः क्षमा हि परमं बलम्॥ क्षमाशील पुरुषों में एक ही दोष का आरोप होता है। दूसरे की तो सम्भावना ही नहीं है। दोष यह है कि क्षमाशील को लोग असमर्थ समझ लेते हैं किन्तु क्षमाशील का वह दोष नहीं मानना चाहिए क्योंकि क्षमा में बड़ा बल है।
-वेदव्यास (महाभारत, उद्योग पर्व, ३३४७-४८)
क्षमा गुणो सशक्तानां शक्तानां भूषणं क्षमा। क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण तथा समर्थ मनुष्यों का भूषण है।
-वेदव्यास (महाभारत, उद्योग पर्व,३३४९)