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"ग्रन्थ-परीक्षा"द्वितीय-भाग : एक अनशीलन
प्रोफेसर (डॉ.) भागचन्द्र जैन "भागेन्दु"
श्रवणवेलगोला (कर्नाटक)
प्रास्ताविक :
जैन संस्कृति, कला, इतिहास, पुरातत्त्व एवं वाङ्मय की बहुमूल्य सम्पदा गुफाओं, मंदिरों, शास्त्र-भण्डारों और अलमारियों में घुटन की सांस ले रहे थे। आकाश में व्याप्त नक्षत्रों के समान सर्वश्री पं गोपालदास बरैया, पं. नाथूराम प्रेमी, ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद, बैरिस्टर चम्पतराय, संत गणेशप्रसाद वर्णी, डॉ हीरालाल जैन, डॉ.ए एन. उपाध्ये आदि मनीषियों का साहित्यिक, सामाजिक और शैक्षणिक सुधार एवं विकास संबंधी प्रकाश प्रतिबिम्बित हो रहा था। स्वर्गीय पं. नाथूराम प्रेमी ने साहित्य समीक्षण के संदर्भ में आचार्यों
और कवियों के अन्वेषण का जो कार्य प्रारंभ किया था, उसके लिए अनेक मेधावी मनीषियों की आवश्यकता थी। युग की यह आकांक्षा थी कि जैन दिगम्बर परम्परा का संरक्षक कोई ऐसा प्रतिभासम्पन्न व्युत्पन्न मनीषी सामने आवे जो समीक्षा के क्षेत्र में सर्वोच्च कीर्ति-स्तम्भ स्थापित कर सके। जिसके व्यक्तित्व में हिमालय की ऊँचाई और समुद्र की गहराई का मणीकांचन सन्निधान हो, जो निंदा एवं प्रशंसा के झोकों से विचलित न हो सके, जिसमें प्रतिभा, क्रियाशीलता, आर्ष-मार्ग के संरक्षण और संवर्धन की वृत्ति, स्वाध्यायशील जीवन, सदाचार-प्रवणता और वाङ्मय तथा समाज उत्थान की लगन हो। पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" :
(स्व.) पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार "युगवीर"का जन्म इसी आकांक्षा/ अभाव की पूर्ति/पूरक बनकर सरसावा (जिला सहारनपुर) में श्रीमान् चौधरी नत्थूराम जी जैन अग्रवाल के घर एक नई अरुणिमा के रूप में हुआ। मार्ग