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पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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उसकी विवशता का लाभ उठाकर उसको मार डालता है और उसको उदरस्थ कर लेता है।
मीन या मछली की इसी विवशता को लक्ष्य में रखकर प्राच्यविद्यामहार्णव, इतिहासज्ञ पं. जुगलकिशोर मुख्तार ने 'मीन-संवाद' नाम से एक कविता लिखी है, जिसमें मीन के मुख से उसकी बेवशी कहलवाई गई है। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने इसे मीन का आत्म-निवेदन नाम दिया है, जो यथार्थ है। वस्तुतः इस कविता में अन्योक्ति के माध्यम से सज्जन या निर्बल व्यक्ति के ऊपर ढाये गये कहर का रेखाङ्कन किया गया है। 'मीन-संवाद' नामक इस कविता में मीन (मछली) ने अपने ऊपर ढाये गये अत्याचार का निवेदन किया है। यद्यपि मीन बेजुवान प्राणी है, अतः उसके द्वारा कुछ भी कह पाना सम्भव नहीं है तथापि 'जहाँ न जाये रवि वहाँ जाये कवि' वाली लोकोक्ति को सार्थक करते हुये आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार ने मीन की पीड़ा को आत्मसात करते हुए मीन के मुख से निवेदन कराया है। पर दुःखकातर व्यक्ति के द्वारा ऐसा होना स्वाभाविक है। 'क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्' अथवा 'दीन-दुःखी जीवों पर मेरे उर से करुणा स्रोत बहे' की भावना को प्रकट करने वाले मुख्तार सा. द्वारा 'जैन-सम्बोधन', 'समाज सम्बोधन' जैसे जन सामान्य सम्बोधनों के साथ 'वर-सम्बोधन', 'विधवा सम्बोधन' और 'धनिक-सम्बोधन' जैसे उद्बोधनों को प्रस्तुत किया गया है, जिनसे उन-उनके कर्तव्यों पर अच्छा प्रकाश पड़ता है।
इस क्रममें उन्होंने बकरे जैसे मूक प्राणी को भी सम्बोधित किया है और 'मीन-संवाद' के माध्यम से मछली की विवशता को प्रकट किया है। मत्स्य की पीड़ा को समझना उनके हृदय की करुणा का विस्तार है। निश्चित ही उन्होंने समाज में रहकर जो देखा, जो सुना और जो अनुभव किया, वही उनकी तेजस्विनी लेखनी से कागज पर सिमट गया। आदरणीय मुख्तार सा. ने उन बुद्धिजीवी लोगों के अन्तस् को झकझोरने का प्रयास किया है, जो करुणावाद के गीत गाते हैं, किन्तु मछली जैसे प्राणियों पर निर्दयतापूर्वक जुल्म ढाकर उनको उदरस्थ करने से नहीं चूकते हैं।