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168 Pandit Jugal Kishor Mukhtar “Yugveer" Personality and Achievernents
मोहादि-जन्य-दोषान्यः सर्वाजित्वा जिनेश्वरः। वीतरागश्च सर्वज्ञो जातः शस्ता नमामि तम् ॥१२
मुख्तार साहब एक चिन्तनशील, स्वाध्यायी, एवं अनुभवी विद्वान् थे। उनके चिन्तन की धारा उनकी रचनाओं परिलक्षित होती है। यदि यह कहा जाये की बीसवीं शताब्दी में जैन वाङ्मय को पुष्पित और पल्लवित करने का श्रेय आपको जाता है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यही कारण है कि आपको बाबू छोटेलाल जी द्वारा वीरशासन महोत्सव के अवसर पर कलकत्ते में "वाङ्मयाचार्य" की उपाधि से सम्मानित किया गया।
मुख्तार साहब की विशेषता है कि कम शब्दों में अधिक कह देना।निम्न श्लोक में उन्होंने आचार्य अमृतचन्द्र सूरि को अनेक विशेषणों से युक्त एवं अध्यात्म वेत्ताओं पर शासन करने वाला कहा है
आगम-हृदय-ग्राही मर्म-ग्राही च विश्व-तत्त्वानाम्। यो मद-मोह-विमुक्तो नय-कुशलो जयति स सुधेन्दुः॥"
मुख्तार साहब की संस्कृत रचनायें सरल संस्कृत भाषा में हैं। जिससे सामान्यजन भी उनका भाव ग्रहण कर रसास्वादन कर सकता है। उसमें व्याकरण की क्लिष्टता दिखाई नहीं देती। उनकी रचनाओं में पांडित्य प्रदर्शन नहीं बल्कि यथार्थ स्थिति को दर्शाया गया है। उन्होंने शान्तरस का ही बहुधा प्रयोग किया है।
जैन आदर्श नामक रचना में 10 छन्दों द्वारा मुख्य रूप से जैनियों के गुणों का दिग्दर्शन कराया गया है। अतः हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि हम अपने गुण-दोषों का आत्मावलोचन करें।
जैनी कैसा हो देखियेअनेकान्ती भवैज्जैनः स्याद्वादन-कलान्वितः। विरोधाऽ निष्ट-विध्वंसे समर्थ: समता-युतः। दया-दान-परो जैनो जैनः सत्य-परायणः। सुशीलोऽवंचको जैनः शान्ति-सन्तोष-धारकः॥