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प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर'' व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व है। इस सम्पूर्ण दृश्य को देखकर मेरा हृदय विदीर्ण हो उठता है। हे इन्द्र तुम तब कुछ करने में समर्थ हो फिर भी तुम निर्दयी होकर धर्म का पालन नहीं कर रहे हो -
"हो करके सामर्थ्यवान, क्या देख रहे हो? क्यों नहिं आते पास? वृथा क्या सोच रहे हो। धर्म पालना कठिन हुआ, अब देर करोगे -
तो तुम यह सब पाप-भार निज सीस धरोगे।" इसी प्रकार राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर ने "मेरे नगपति मेरे विशाल" कविता में भी बताया है कि यह देश वीरों, वीरांगनाओं, ऋषियों
और संसार प्रख्यात उपदेशकों का रहा है। हिमालय को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा है -
"तू तरुण देश से पूंछ अरे , गूंजा यह कै सा ध्वंस राग? अम्बुधि अन्तस्तल बीच छिपी,
यह सुलग रही है कौन आग।" राष्ट्रकवि श्री बालकृष्ण शर्मा नवीन जो स्वयं भी स्वतंत्रता संग्राम के कर्मठ सैनिक रहे हैं, उनका व्यक्तित्व भी युगवीर जी की भाँति निर्भीक शौर्य का प्रतीक है उनकी वाणी भी तेज के स्फुल्लिंग उगलती है। आत्मा की वाणी होने के कारण इन कवियों की देशभक्ति की कविताओं में अपूर्व प्रभाव क्षमता है। जब देश का युवक समाज इनको सुनकर हथैली पर अपने प्राण ले घर से निकल पड़ा था तो कवि नवीन ईश्वर पर भी अपनी रोष-दृष्टि करने पर उतारू हो जाते हैं -
"जगपति कहाँ। अरे! सदियों से बहता हुआ राख की ढेरी, वरन् समता संस्थापन में लग जाती क्यों इतनी देरी छोड़ आसरा अलख शक्ति का। रे! नर स्वयं जगपति तू है।"
आज राष्ट्र में धार्मिक भावना की प्रवृत्ति लुप्त होती जा रही है और पाप की दुर्गन्ध वातावरण में व्याप्त हो गई है फिर भी