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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
164 कोई भी न जुटा सका। इस सम्बन्ध में पं. नाथूराम जी 'प्रेमी' का निम्न कथन उल्लेखनीय है, वे लिखते हैं -
"मैं नहीं जानता कि पिछले कई सौ वर्षों में किसी भी जैन विद्वान् ने इस प्रकार का समालोचनात्मक ग्रन्थ इतने परिश्रम से लिखा होगा और यह बात तो बिना किसी हिचकिचाहट के कही जा सकती है कि इस प्रकार के परीक्षा लेख जैन साहित्य में सबसे पहिले हैं।" २
___ मुख्तार साहब का व्यक्तित्व एक कर्मयोगी का व्यक्तित्व था। एक बार पंडित जी अपने अनन्य मित्र पं. नाथूराम जी 'प्रेमी' के घर गये, उनका बच्चा हेमचन्द्र अत्यधिक चंचल प्रवृत्ति का था। एक दिन उसके चाचा लालटेन साफ कर रहे थे कि टूटी चिमनी उनके हाथ में चुभ गई, जिससे वे व्याकुल हो उठे और सिसकने लगे। हेमचन्द को उनका सिसकना अच्छा नहीं लगा। मुख्तार साहब यह सब घटना देख रहे थे। अत: इस घटना से प्रभावित होकर मनोरंजनार्थ उन्होंने एक पद्य बनाया और चाची जी को सुनाने लगे - काका तो चिमनी से डरत फिरत हैं
काट लिया चिमनी ने "सी-सी" करत हैं अब नहीं छुयेंगे ऐसौ कहत हैं।
देखो जी काकी, ये वीर बनत हैं। मुख्तार साहब के साहित्य में हमें बाल मनोविज्ञान के दर्शन होते हैं। वे सर्वदा कर्त्तव्य के दायित्व में बंधकर कठोर से कठोर कार्य करने को उद्यत रहते थे। संक्षेप में कहें तो मुख्तार साहब सरस्वती के ऐसे वरद् पुत्र हैं जिन्होंने लेखन, सम्पादन और कवित्व द्वारा माँ भारती का भण्डार समृद्ध किया है।
कविता भावों की विशेष उद्बोधिका होती है, जो मानव के अन्तस को जागृत करती है। मुख्तार साहब की कविता भारती का नवोदित शृंगार है। इसमें माधुर्य की मधुरता प्रसाद की स्निग्धता, पदों की सरसता, अर्थ सौष्ठव, अलंकारों का मंजुल प्रयोग दृष्टिगोचर होता है। इनकी कविताओं व स्तोत्रों में कलापक्ष की अपेक्षा भावपक्ष अत्यधिक मुखर हुआ है। सच्चे मायने में मुख्तार साहब एक सहृदय कवि हैं। उनकी काव्य रचनाओं का संग्रह "युगवीर