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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements
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"धार्मिक का कर्तव्य नहीं क्या धर्म चलाना? पतितों को अवलम्ब दान कर शीघ उठाना। इससे क्यों फिर विमुख हुए तुम होकर दाना। किया नहीं उद्धार धर्म का निज मन माना॥"
भारत भूमि तीर्थ भूमि है पूजनीय है। इसके ही प्रताप से इन्द्रपद प्राप्त किया लेकिन फिर भी हे इन्द्र! तुमने इस भारत भूमि को भुला दिया, तुम अत्यन्त शक्तिशाली होकर भी मौन धारण किये हुये हो और राष्ट्र को उत्पात से बचाते नहीं आज लोगों को इन्द्र या ईश्वर का भय नहीं रहा और अंत में -
"इससे आओ शीघ्र यहाँ अब देर न कीजे, दुष्टों को दे दण्ड, धर्म की रक्षा कीजे। कीजे ऐसा यत्न, सभी नव जीवन पावें, बन करके "युगवीर" पूर्व-गौरव प्रकटावें ॥"
अतः हम कह सकते हैं कि युगवीर जी, नवीन जी, गुप्तजी और दिनकर ने जिस प्रकार अपनी कविताओं में धर्म तथा राष्ट्र के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है उसी प्रकार हमें भी अपने धर्म तथा देश पर हो रहे अत्याचारों को मिटाना है। अगर हम धार्मिक होकर भी अपने धर्म की रक्षा नहीं कर सकें तो हमारा जीवन व्यर्थ है।
__ "युगवीर भारती" काव्य पुस्तक के सत्प्रेरणा खण्ड की "जैनी कौन" कविता में पं जुगल किशोर मुख्तार जी ने जैन के स्वरुप का विवेचन किया है। जैनधर्म तथा दर्शन में जाति पाँच स्वीकार की गई है। एक इन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जाति। इसके अलावा अन्य किसी भी जाति का उल्लेख नहीं मिलता। (जैन कुल में जन्म लेकर हम अभिमान में झूल रहे हैं और आचरण से शून्य होते जा रहे हैं ऐसे समय में "युगवीर जी" ने कहा कि जो निम्न लिखित आचरणों से मुक्त होगा वही जैनी कहलायेगा)।
"कर्म इन्द्रियों को जीते जो,"जिन" का परम उपासक जो। हेयाऽदेय - विवेक - युक्त जो, लोक - हितैषी जैनी सो॥