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प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
परम अहिंसक, दया दान में तत्पर, सत्य परायण जो । घरे शील - संतोष अवंचक, नहीं कृतघ्नी जैनी सो ॥"
अर्थात् जिसने कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली, जो जिनेन्द्रदेव का परम उपासक, विवेकी, विश्व का हित चाहने वाला तथा जो हिंसा न करने बाला, दयावीर, दानवीर, सत्य-परायण, शील, संतोषी, कृतज्ञ, अपरिग्रही, ईर्ष्या, द्वेष न रखने वाला, सदा ही न्याय मार्ग पर चलने वाला सुख-दुःख में समता रखने वाला ही जैनी है।
वर्तमान की दुर्दशा देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि महावीर के सिद्धांतों को यदि कोई लुप्त कर रहे हैं वो जैनी भाई ही है तथा वे मद्य, मांस, सप्तव्यसन, हिंसा, व्यभिचार, लोभ आदि की पराकाष्ठा पर हैं, आज विचारणीय प्रश्न है कि हम आदिनाथ स्वामी के वंशज कहाँ किधर जा रहे हैं। मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है -
"कल क्या थे, क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी । आओ विचारे आज मिलकर ये समस्यायें सभी ॥ "
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ये हम सभी के आदर्श रहे हैं परन्तु आज स्थिति ही दूसरी है लेकिन प्रतिकूलता में दूसरों को सहायता व परोपकार करने वाला भी जैनी कहलाता है मुख्तार जी ने लिखा है -
" जो अपने प्रतिकूल दूसरों के प्रति उसे न करता जो सर्वलोक का अग्रिम सेवक, प्रिय कहलाता जैनी सो पर उपकृति में लीन हुआ भी स्वात्मा नहीं भुलाता जो युगधर्मी युगवीर प्रवर है, सच्चा धार्मिक जैनी सो।"
सच्चा जैनी अपने न्याय-नीति को कभी नहीं त्यागता, चाहे वह अपने प्राणों को भी न्यौछावर कर सकता है। पं. श्री युगवीर ने "मेरी भावना" में भी इसी तरह की पंक्तियां लिखी हैं -
"कोई बुरा कहे या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे लाखों वर्षों तक जीऊं या मृत्यु आज ही आ जावे ।