________________
!
पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी "भारतभारती" काव्य पुस्तक में पृष्ठ 171 में लिखा है
"केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए। उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।"
149
कवि युगवीर जी ने अपनी "युगवीर भारती" के सत्प्रेरणा खंड की कविताओं में इसी के अनुरूप मानव समाज को धर्म तथा राष्ट्र के प्रति मरमिटने का उपदेश दिया है। "सत्प्रेरणा खण्ड" सात कविताओं का संग्रह है जिसमें है :- महावीर सन्देश, मीन-संवाद, मानव-धर्म, उपालम्भ और आह्वान, जैनी कौन? इन सभी कविताओं द्वारा कवि ने मानव जीवन को सत्कार्यों की ओर प्रेरित करने का प्रयास किया है।
" संज्ञानी संदृष्टि बनो, " औ" तजो भाव संक्लेश । सदाचार पालो दृढ़ होकर रहे प्रमाद न लेश ॥ सादा रहन-सहन - भोजन हो, सादा भूषा वेश । विश्व - प्रेम जागृत कर उर में, करो कर्म निःशेष ॥ "
सदाचार शब्द बहुत ही व्यापक है इसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आदि पाँचों व्रतों का समावेश है और पाप, मद्य मांसादि अभक्ष्य पदार्थों के त्याग को सदाचार में गृहीत किया है ।
वर्तमान में भगवान महावीर के सिद्धांतों की आवश्यकता है क्योंकि सर्वत्र हिंसा का तांडव, मांसाहार की प्रवृति, दहेज प्रथा का बोलबाला, भ्रष्टाचारअनाचार, अराजकता फैली हुई है। अतः स्वयं पापों का त्याग कर दूसरों को भी इसका उपदेश देना है। पाप से घृणा करो पापी से नहीं। यह प्रचलित उक्ति है। इसी बात को "युगवीर" जी ने अपनी कविता के माध्यम से व्यक्त किया
"घृणा पाप से हो, पापी से नहीं कभी लव-लेश । भूल सुझाकर प्रेम मार्ग से करो उसे पुण्येश ॥"