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पं जुगलकिशोर मुख्तार "पुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व वि. के दीक्षान्त समारोह में गीता के साथ मेरी भावना का भी वितरण दीक्षार्थियों को किया।जैन आबालवृद्धों को कंठस्थ हजारों की संख्या में देश विदेशी जनता इसका नित्य पाठ करती है। अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती, मराठी, कनडी और संस्कृत आदि अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद हो चुके हैं। कवि ने मेरी भावना के ११ पद्यों में अनेक आर्ष ग्रन्थों का सार भर कर प्राणीमात्र के प्रति सुख की कामना की है इसमें धर्म, अध्यात्म और सदाचरण का सम्यक् निवेश हुआ है प्रसाद गुणी है।
'मेरी भावना' जितनी लोकप्रिय हुई, उतनी अन्य कोई नहीं। इस अकेली कविता ने ही कवि को उसने कहा था के कहानी लेखक चन्द्रधर गुलेरी की भांति अमर बना दिया। जब तक भारत राष्ट्र का अस्तित्व रहेगा, तब तक कविवर युगवीर की मेरी भावना जन-जन के कण्ठ का हार बनी रहेगी।
कविवर युगवीर जी की सबसे प्राचीन रचना अनित्य भावना' जो सन 1901 में रची गई थी, वह आचार्य पद्मनन्दि के अनित्य पञ्चाशत् ग्रन्थ का मूलानुगामी पद्यानुवाद है। इस सं. रचना ने कवि के जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया। स्वयं युगवीर जी के शब्दों में "अनित्य पंचाशत् ने मेरे जीवन की धारा को बदला है। इसने मुझे विषय-वासना के चक्कर में, हर्ष-विषाद की दल-दल में और मोह, शोक तथा लोभ के फन्दे में अधिक फंसने नहीं दिया। यही वजह है कि विषय-वासना को पुष्ट करने वाली कोई भी कविता आज तक मेरी लेखनी से प्रसूत नहीं हुई। मेरी कविताओं का लक्ष्य मुख्यतः स्वात्मसुख और लोक सेवा रहा है।"
"अनित्य भावना" कविता ने पाठकों को भी इतना प्रभावित किया कि इसके मूल सहित तीन संस्करण कई हजार की संख्या में पहले ही प्रकाश में आ
चुके थे। यह रचना पद्यानुवाद के रूप में कवि की सर्व प्रथम कृति है। पद्यानुवाद होते हुये भी यह कविता भाव भाषा की दृष्टि से उत्तम कोटि की है।
जल बुद् बुद् सम है तनु, लक्ष्मी इन्द्र बालवत् मानों, तीव्र पवन इत मेघ पटल सम, धन कान्ता सुत जानो। मत्त-त्रिया के ज्यों कटाक्ष त्यों, चपल विषय-सुख सारे, इससे इनकी प्राप्ति नष्टि में, हर्ष शोक क्या प्यारे ।