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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
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आज मानव मन से दया, मृदुता, सरलता समाप्त हो चुकी है, वह उदरपूर्ति हेतु मूक-निरीह को रसना इन्द्रिय के वशीभूत हो भोज्य वस्तु बनाये हुये हैं।"
"मनुज प्रकृति से शाकाहारी। मांस उसे अनुकूल नहीं॥ पशु भी मानव जैसे प्राणी।
वे मेवा फल-फूल नहीं।" समाज के वातावरण की नींव पर ही साहित्य का प्रसाद खड़ा होता है। समाज की जैसी परिस्थितियाँ होगी, वैसा ही उसका साहित्य होगा। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का यह कथन नितान्त सत्य है कि साहित्य ही समाज का दर्पण है।
जिस प्रकार सूर्य की प्रथम किरण का आलोक दो जगतीतल का अंधकार दूर हो जाता है, उसी प्रकार युगवीर की कविताओं का आलोक पर मोह निद्रा में पड़े मानव ज्ञानामृत का पानकर पुलकित हो उठे -
"क्या तत्व खोजा था, उन्होंने आत्म जीवन के लिये। किस मार्ग पर चलते थे वे, समुन्नति के लिये ॥ इत्यादि बातों का नहीं तब, व्यक्तियों को ध्यान है। वे मोह निद्रा में पड़े, उनको न अपना ज्ञान है।"
आध्यात्म की अविरल निर्मल धारा को प्रवाहित कर समाज का कलंक मिटाने हेतु देश के कर्णधार नव-युवकों को सम्बोधित करते हुये, आपने जैन संस्कृति के गौरव में चार-चाँद लगा दिये हैं, वर-सम्बोधन के रूप में आपने लिखा है
"अटल लक्ष्य रहें इनमें सदा, 'युग प्रताप' न चालित हो कदा। धरम की धन की नहिं हानि हो, सफल यों स्वगृहस्थ विधान हो॥"
___ जहाँ हृदय में मन्द-मन्द गन्ध, देह में मातृत्व का गौरव, गृह के कणकण की व्याप्त दीवारें, जिसके सहज स्नेह के कारण चमक उठती है, वही