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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements "रागी को राग और वैरागी को सृष्टि के कण-कण में वैराग्य झलकता है । वैराग्य धारण करने की कोई अवस्था नहीं होती। जैसा कि - "
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'जीवन के किसी भी क्षण में, वैराग्य झलक सकता है। संसार में रहकर प्राणी, संसार से तिर सकता है ।"
युगवीर भी ऐसे ही घर में वैरागी थे। वे गृहस्थ जीवन की चट्टानों को चीरते हुये, धन वैभव की आँधी को झकझोरते हुये, काव्यमय लोरियों द्वारा अज्ञान निद्रा में सोये मानवों को जगाने का मार्ग प्रशस्त कर गये हैं । धनिकों की मनोवृत्ति का उद्बोधन करते हुये किसी कवि ने लिखा है -
"श्वानों को मिलता दूध वस्त्र । भूखे बच्चे अकुलाते हैं ॥ माँ की हड्डी से चिपक हितुर । जाड़े की रात बिताते हैं ॥ युवती की लज्जा वसन बेच । जब ब्याज चुकाये जाते हैं ॥ मालिक तब तेल फुलोलों पर । पानी सा द्रव्य नहाते हैं ।"
धनिक सम्बोधन के माध्यम से 'युगवीर' ने लिखा है
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" भारतवर्ष तुम्हारा है, तुम हो भारत के सुपुत्र उदार । फिर क्यों देश विपत्ति न हरते करते इसका बेडा पार ॥ "
अन्त में मैं यह कहना चाहूँगी पं. जुगलकिशोर मुख्तार इस युग के सच्चे युगवीर थे। जिन्होंने सौ से अधिक निबन्ध लिखकर अपनी लेखनी को कृतकृत्य कर दिया। ऐसा कोई पहलू अछूता नहीं रहा जिसे उन्होंने अपनी लेखनी का विषय न बनाया हो ।
बध्य स्थान पर जाते समय बकरे की मनोवृति का अध्ययन कर उन्होंने लिखा है, हे अज! इस नृशंस मानव द्वारा अपनी क्षुधा की तृप्ति हेतु तुम्हें घसीट कर ले जाया जा रहा है, तुम स्वयं ऐसा विचार क्यों नहीं करते हो ।