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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
'युगवीर भारती' में मेरी भावना के समान “अनित्य भावना" भी प्रभावी है। युगवीर भारती की कविताओं मे कवि के सुसंस्कृत हृदय की उदार भावनाएं पूरी मात्रा में विद्यमान हैं। ये कविताएं जीवन में मंगल प्रभात का उदय करने वाली है। काव्यत्व की दृष्टि से भी प्रसाद और माधुर्य गुणों का समावेश हुआ है। मानव की विभिन्न चित्तवृत्तियों का सूक्ष्म और सुन्दर विवेचन हुआ है। भावात्मक शैली में कवि ने अपने हृदय की अनुभूतियों को सरल रुप में अभिव्यक्त किया है। सभी कविताएं है। युगवीर भारती का सन्देश है- मानव का वास्तविक उत्थान इन्द्रिय निग्रह से होता है। इन्द्रियों का दास बन जाना पशु भव है और उनका स्वामी बन जाना देवत्व है।
'मैं किस-किसका अध्ययन करूं' मैं कवि की उदात्त भावना है
सब विकल्प तज निज को ध्याऊं, निज में रमण करूं। निजानन्द-पीयूष पान कर सब विष वमन करूँ ॥ मेरा रुप एक अविनाशी, चिन्मय मूर्ति धरूँ । उसको साधे-सवसध जावे, क्यों अन्यत्र भ्रम॥ लोक मे सुखी वहीं होता है- परिग्रह ग्रह मत्वानाऽत्यासक्तिं करोतियः।
आत्मशुद्धि को प्राप्त सन्तोषी प्राणी-त्यागेन शुद्धि सम्पन्नः सन्तोजे भुवने सुखी॥
निसन्देह कविवर युगवीर जी का काव्य-साहित्य विश्व बन्धुत्व का परिचायक है। वह नवीन प्रेरणा का स्त्रोत है, जीवन निर्माण का आधार है
और आत्मोन्नयन एव मानवोत्थान का अग्रदूत है। या विद्या सा विमुक्तये को सार्थक है।
ऐसे कविवरो के लिये ही कहा गया है:
धन्य सुरस के सीरक कवि, तिन सुकृति जग माहि । जिनके यश के काय में जरा मरणज भय नांहि ॥