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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements "आप इसे "मिनी सामायिक" तो कहे "ही" लोक सामायिक भी कहें, क्योंकि यह समुदाय में होकर भी व्यक्ति के भीतर समाकर उसे बदलने की अपूर्व क्षमता रखती है।"
डॉ. नेमीचन्द्र जैन (ख) कवि "श्री युगवीर" ने मेरी भावना में अनुवादन शैली को भी अपनाया है। संस्कृत के कुछ श्लोकों का शब्दाशः अनुवाद "मेरी भावना"में है। अनुवाद इतना सरल है कि संस्कृत की बोझिलता पूर्णत: समाप्त हो गयी है तथा वे पद कवि की मौलिक प्रतीत होते हैं। यथा -
"मेरी भावना" का पद क्रमांक 5 (मैत्री भाव जगत में ऐसी परिणति हो जावे) श्री आचार्य अमितगति की सुप्रसिद्ध रचना (संस्कृत) "भावना द्वात्रिंशतिका" के प्रथम श्लोक (सत्वेषुमैत्री ...... विद्धातु देव) का हिन्दी पद्यानुवाद है।
इसी प्रकार मेरी भावना का पद क्रमांक 7 (कोई बुरा कहो ......... न पग डिगने पावे) श्री भर्तृहरि की कृति "नीतिशतकम्' के श्लोक ("निन्दंतु नीति निपुणाः ........ न प्रविचलन्ति धीराः") का हिन्दी रुपान्तर है। तथा मेरी भावना का पद क्रमांक 10 (ईति-भीति व्यापे नहिं ........ सर्वहित किया करे।) शांतिपाठ के श्लोक (क्षेमं सर्वप्रजानां ......... सर्व सौख्यप्रदायि) का हिन्दी पद्यानुवाद है। (स) अलंकार
"काव्य-शोभा-करान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्ष्यते" के अनुसार अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्म हैं। अलंकार काव्य के लिए आवश्यक नहीं है, बिना अलंकार के भी कविता हो सकती है, मेरी भावना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।"मेरी भावना" के बारे में यह पंक्ति "नहीं मोहताज जेवर की, जिसे खूबी खुदाने दी" अक्षरशः के बारे में यह पंक्ति "मेरी भावना" स्वयं में एक प्राणवती, रसवन्ती कविता है। उसमें सरलता, सरसता, शुचिता, सादगी, स्वाभाविकता है। यही "मेरी भावना" का श्रृंगार है। उसमें अलंकारों की