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132 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
वे मोह को नहीं अपितु विश्व प्रेम की महनीयता को उपादेय रूप में स्वीकार करेंगे योग्य मानते हैं। अशांति के कारणों में वाणी की असीमीचीनता कटुता कठोरता भी परिगणित है जो सह अस्तित्व के मंगलमय वातावरण को निरुद्ध करती है। युगवीर जी के शब्दो में यह प्रकट किया गया है कि सभी जनवाणी का सत्य प्रयोग करें, वहीं हिकर है। उनका मन्तव्य है कि जन-जन यह कामना रखें कि देश राष्ट्र निरन्तर उन्नति को सुख-शान्ति को प्राप्त करें। अन्तिम पंक्ति में तो समता का मूल मन्त्र ही कवि ने प्रदान किया है जो कि आगम का सार है। भाव यह है कि दुख की स्थिति में यथार्थ वस्तु स्वरुप का चिन्तन ही सबल होता है। कर्मोदय के अनुसार ही प्राणी फल प्राप्त करता है उनके कर्तव्यों पर ही दृष्टि रखकर सुख शान्ति प्राप्त की जा सकती है।
सारांश यह है कि मेरी भावना में जुगलकिशोर मुख्तार ने आगम का सार बड़े लोकप्रिय रूप में प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है। यह रचना यावच्चन्द्रदिवाकरै हमारा मार्गदर्शन करने में समर्थ रहेंगी। मुख्तार साहब के प्रति हमारी कृतज्ञता यही होगी कि उनकी रचना के भाव को हम अपने जीवन में उतारेंगे।
गुणाधीनं कुलं ज्ञात्वा गुणैष्वाधीयतां मतिः। कुलों के सम्मान का कारण गुण है, अतः गुणों में बुद्धि लगानी चाहिए।
-क्षेमेन्द्र (दर्पदलन, १।१४) दयैव विदिता विद्या सत्यमेवाक्षयं धनम्।
अकलंकविवेकानां शीलमेवामलं कुलम्॥ कलंकहीन विवेक वाले प्राणियों की दया ही प्रशस्त विद्या है, सत्य ही धन है और शील ही निर्मल कुल है।
-क्षेमेन्द्र (दर्पदलन, १।१४)