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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements
यमाश्रित्य बुधाः श्रेष्ठाः संसारार्णव पारगाः।
बभूवुः शुद्ध-सिद्धाश्च तंवीरं सततं भजे ॥ जिनका आश्रय लेकर श्रेष्ठ बुधजन संसार-समुद्र के पारगामी हुये हैं, और शुद्ध सिद्ध बने हैं, उन वीर प्रभु को मैं निरन्तर भजता हूँ।
'समन्तभद्र स्तोत्र' में ११ पद हैं। इस स्तोत्र में कवि ने समन्तभद्र को अपना गुरू मानकर उनका स्तवन किया है।
श्री वर्द्धमान वर भक्त-सुकर्म योगी सबोध चारु चरिताऽनघवाक् स्वरुपी। स्याद्वादतीर्थजल पूत समस्त गात्र:
जीयात्त्स पूज्य गुरुदेव समन्तभद्रः ।। जो श्री वर्धमान के श्रेष्ठ भक्त हैं, सच्चे कर्मयोगी हैं, सम्यक्ज्ञान, चरित्र तथा निर्दोषवचन के स्वरूपी हैं, जिनकी समस्त देह स्याद्वादरूपी तीर्थजल से पवित्र हैं, वे पूज्य गुरुदेव स्वामी समन्तभद्र जयवन्त थे। कवि अपने गुरू को दैवज्ञ, मात्रिक, तात्रिक, सारस्वत, वारिसद्धि प्राप्त, महावादविजेताओं का अधीश्वर सिद्ध करता है। कवि कहता है कि जन सामान्य आपकी कृतियों का अध्ययन आपके सिद्धसारस्वत होने के कारण नहीं, किन्तु लोक जीवन के मार्मिक पक्ष को समाज सम्मुख उपस्थित करने से करता है। कवि ने यह कहकर अपने गुरु के सर्वोदय सिद्धान्त की प्रतिष्ठा की है। कवि ने पौराणिक आख्यान के अवलम्बन से स्तुति की है कि जिसने अपने स्तोत्रशक्ति से इस कलिकाल में चन्द्रप्रिय जिनेन्द्र के प्रतिबिम्ब को प्रकट कर राजा शिव कोटि और उनके भाई शिवायन को प्रभावित किया, वे समन्तभद्र कुमार्ग से हमारी रक्षा करें। (पद्य 5) जिनकी वाणी सम्पूर्ण सुख की प्राप्ति का मार्ग बतलाने वाली, तत्त्वों के प्ररूपण में तत्पर, नयों की विवक्षा से विभूषित
और युक्ति तथा आगम के साथ अविरोध रूप हैं, वे शास्त्रा समन्तभद्र अपनी वाणी द्वारा वे सन्मार्ग दिखलाएं। (पद्य स. 6)
'मदीया द्रव्य पूजा भाव की दृष्टि से सुन्दर कविता है। कवि ने अपने आराध्य वीतरागी प्रभु से आत्म निवेदन किया है कि जल चन्दन, अक्षत, पुष्प,