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पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
प्रस्तुत पंक्तियां आ. पद्मनन्दी कृत पूजा के अंत में शान्तिपाठ का भाव ही सिद्ध होती है। प्रस्तुत है शान्तिपाठ की पंक्तियां
शास्त्राभ्यासो जिनपतिनुतिः संगतिः सर्वदायः।
सदवृत्तानां गुणगण कथा दोषवादे च मौनं । इन पक्तियों के अनुवाद में रचित उपरोक्त मेरी भावना के अंश में युगवीर ने सभी के लिए सत्संगति को सुलभ बनाने की शुभ कमनीय कोमल, शान्त और उदान्त भावना प्रकट की है।
आ. समन्तभद्र ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार नामक चरणानुयोग के महान ग्रन्थ का प्रणयन किया है। उसमें श्रावक के अणुव्रतों-अहिंसा, सत्य,अचौर्य, स्वदारसंतोष एवं परिग्रह परिमाणव्रत का उपदेश दिया गया है जिनके पालन से रागद्वेष की हानि रूप फल प्राप्त होता है। उन्होंने कहा है -
प्राणातिपातवितथव्याहार स्तेयकाममूर्छ भ्यः ।
स्थूलेभ्यः पापेभ्यो व्युपरमणमणुंव्रत भवति ॥५२॥
प्राणों का घात असत्य वचन, चोरी, कुशील और परिग्रह के स्थूल त्याग को अणुव्रत कहते हैं। जीवन शैली के सुखद उभयलोक में कल्याणकारी अणुव्रत रूप महामंत्र की साधना करने हेतु युगवीर का अन्तरंग निम्न भावपूर्ण शब्दों में प्रभु से कामना करता है,
नहीं सताऊं किसी जीव को झूठ कभी नहीं कहा करूं। परधन-वनिता पर न लुभाऊ सन्तोषामृत पिया करूँ ॥
कितने संक्षिप्त एवं जनप्रिय सरल भाषा युक्त कथन में आर्ष आगमों का सार कवि ने प्रकट किया है। उनका विशद आगम ज्ञान एवं इस ज्ञान सहित और परहित के रुप में सरलतम शब्दों में प्रयोग युगवीर का कथ्य है जो कि तथ्य है, पथ्य है। ___आ. उमास्वामी कृत तत्वार्थसूत्र जैनागम का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। उसमें १२ व्रतों की भावनाओं के साथह ही निम्न भावना का उपदेश भी दिया गया है।