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जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर " व्यक्तित्व एवं कृतित्व
फैलाओ सत्कर्म जगत में, सबको दिल से प्यार करो, बने जहाँ तक इस जीवन में औरों का उपकार करो।
धनिकों को सम्बोधन करते हुए 'युगवीर ने कहा कि हाय, भारत में कितने वस्त्रहीन और क्षुधापीड़ित जन घूम रहे हैं। कितनों ने ही असहाय होकर धर्म-कर्म बेच दिया है। जो भारत सब देशों का गुरु, महामान्य और सत्कर्म प्रधान था, वह गौरवहीन होकर, पराधीन बनकर अपमान सह रहा है। हे धनिकों! भारत की यह दशा देखकर क्या तुम्हें सोच विचार नहीं आता है? क्या तुम पड़े-पड़े इसी प्रकार दुःख के पारावार को देखते रहोगे। क्या जिसके धन से धनिक हुए हो, उसकी बात भी नहीं पूछते हो? क्या तुम जिसकी गोद में पले हुए हो, उस पर उत्पात होता हुआ देखोगे? आगे वे धनिकों का आह्वान करते हैं
भारतवर्ष तुम्हारा, तुम हो भारत के सत्पुत्र उदार, फिर क्यों देश-विपत्ति न हरते, करते इसका बेड़ापार? पश्चिम के धनिकों की देखो, करते हैं वे क्या दिनरात,
और करो जापान देश के धनिकों पर कुछ दृष्टि निपात ॥
मुख्तार सा. की कविता 'अजसंबोधन' उनके संवेदनशील हृदय, परदुःखकातरता और निराशा की स्थिति में भी आशा की किरण ढूंढ़ने वाली है। बकरे को संबोधित करते हुए वे कहते हैं - हे बकरे! तुम खिन्न मुख क्यों हो, तुम्हें किस चिन्ता ने घेरा है? तुम्हारा पैर उठता न देखकर मेरा चित्त खिन्न हो रहा है। देखो, तुम्हारी पिछली टाँग पकड़कर वधिक उठाता है? वह जोर से चलने को धक्का देता जाता है।
कभी वधिक तुम्हें उल्टा कर देता है, कभी दो पैरों से खड़ा कर देता है। कभी दांत पीसकर तुम्हारे कान ऐंठता है। कभी तुम्हारी क्षीण कुक्षि में खूब मुक्के जमाता है। कभी यह नीच तुम्हारे अण्डकोषों को खींचकर पुनः पुनः तुम्हें चलाता है।
इस घोर यातना को सहकर भी तुम कभी कदम नहीं बढ़ाते हो, कभी दुबकते हो, कभी पीछे हटते हो और कभी ठहरते जाते हो, मानों तुम्हारे