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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements मैत्री भाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे। दीन-दुखी जीवों पर मेरे, उर से करुणा स्रोत बहे। दुर्जन क्रूर, कुमार्गरतों पर, क्षोभ नहीं मुझको आवे। साम्यभाव रक्खू में उन पर, ऐसी परिणति हो जावे।
मेरी भावना, पद क्रमांक .....5 साहित्य के सम्बन्ध में एक बात और उल्लेखनीय है कि व्यक्ति जैसा होता है, उसकी भावनायें, उसके आदर्श, उसकी मनोदशा, उसकी परिस्थितियां, उसकी प्रकृति का अवतरण उसकी रचनाओं में देखा जा सकता है, साहित्य उनसे अछूता नहीं रह सकता।
श्री "युगवीर" की बाल्यकाल से ही सत्य के प्रति अगाध निष्ठा थी, अहिंसा में विश्वास था। उनमें जिनवाणी की रक्षा करने की बलवती भावना थी। वे कुशल उपदेष्टा थे। उन्हें धन के प्रति कोई आकर्षण नहीं था। वे जैन धर्म और जैन वाड्मय के प्रचण्ड पंडित होने के साथ ही उनकी सेवा के लिए सर्वतोभावेन समर्पित थे। उनके जीवन में सुख-दुख के क्षण भी आये, धार्मिक सिद्धान्तों के प्रति दुराग्रह रखने वाले कुछ लोगों ने उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी, अपने माता-पिता तथा एक मात्र पुत्री का वियोग भी उस रचना के पूर्व उन्हें झेलना पड़ा। वे परम स्वाध्यायी, धीर-वीर, कष्ट सहिष्णु एवं साम्यभावी व्यक्ति थे। ये बिन्दु सार्वभौमीरूप धारण कर""मेरी भावना" में यथा स्थान समाविष्ट हुए हैं । जैसे -
नहीं सताके किसी जीव को, झूठ कभी नहिं कहा करें। पर धन पर तन पर न लुभाऊं, संतोषामृत पिया करें।
मेरी भावना, पद क्रमांक - 3 परम अहिंसा धर्म जगत में, फैले सर्वहित किया करे।
मेरी भावना, पद क्रमांक - 10 होकर सुख में मग्न न फूले, दुख में कभी न घबरावे। पर्वत-नदी-श्मशान-भयानक, अटवीं से नहिं भय खावे॥