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थे जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व 6. "मेरी भावना" और तत्कालीन परिस्थितियां -
साहित्य और समाज का घनिष्ठ सम्बन्ध है। साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है। समाज जैसा होता है, उसका प्रतिबिम्ब तत्कालीन साहित्य में हूबहू प्रतिबिम्बित होता है।
"मेरी भावना" की रचना सन् 1916 में हुई है। वह समय भारत की पराधीनता, भारत की पतनावस्था, अविद्या, सामाजिक कुरीतियों तथा अपने मान्य आचार्यों के विचारों के प्रति उपेक्षा के भाव का युग था।
जातिगत द्वेषभाव था तथा देशभक्ति की आवश्यकता थी। इन परिस्थितियों का प्रतिबिम्ब "मेरी भावना" में दष्टिगोचर होता है क्यों कि कवि युगवीर ने अपने कर्म, समाज, साहित्य और देश की पतनावस्था का भावनात्मक साक्षात्कार कर लिया था एक उदाहरण दृष्ट्व्य है -
फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर ही रहा करे। अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द नहिं,कोई मुख से कहा करे। बनकर सब युगवीर हृदय से, देशोन्नतिरत रहा करें। वस्तु स्वरुप विचार खुशी से, सब दुख संकट सहा करें।
यदि एक ओर साहित्य समाज का दर्पण होता है तो दूसरी ओर वह सुप्त समाज में नवचेतना लाने वाला, रुढ़ियों को छिन्न-भिन्न कर उनमें स्वस्थ, सुखकर, युगानुकूल परिवर्तन करने वाला तथा मन और मस्तिष्क को अतिशयता से प्रभावित करने वाला भी होता है। "साहित्य में वह शक्ति छिपी होती है, जो तोप, तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पायी जाती। 25 "युगवीर"जैसा आदर्श समाज तथा भारत राष्ट्र के लिए जैसा आदर्श नागरिक चाहते थे उसका वर्णन भी उन्होंने मेरी भावना में किया है।
सुखी रहें सब जीव जगत के, कोई कभी न घबरावे। बैर-पाप-अभिमान छोड़ जग, नित्य नये मंगल गावे॥ घर-घर चर्चा रहे धर्म की, दुष्कृत दुष्कर हो जाये। ज्ञान-चरित उन्नत कर अपना, मनुज जन्म फल सब पावे।
मेरी भावना, पद क्रमांक -१