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गुगलकिशोर मुखार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व की संख्या कम तथा पारिश्रमिक अधिक था। अतः साधारण जनता भारी भरकम फीस देने में सर्वथा असमर्थ थी। मुख्तार लोग फौजदारी मुकदमों में बहस भी किया करते थे। ये मुकदमे मौखिक गवाही पर ही अधिक चलते थे, अतः मुख्तार लोगों की आमदनी साधारण वकीलों से भी अधिक थी। मुख्तार जी ने झूठ पर आधारित इस पेशे में रहकर भी कभी झूठ का आश्रय नहीं लिया, फिर भी वादी-प्रतिवादी इन्हें अपना मुकदमा सुपुर्द कर निश्चिन्त हो जाते थे। आपने 10 वर्षों तक मुख्तारी की और इसीलिए इस नाम से प्रसिद्ध हुए।
वाङ्मय का स्वाध्याय मुख्तारी पेशे के लिए बाधक था, अत: इस पेशे को छोड़कर मात्र साहित्य-साधना में संलग्न हो गये।
12 फरवरी, 1914 ई. का दिन जैन वाङ्मय के लिए ज्योति पर्व था, जिस दिन पं. मुख्तार जी ने सर्वतोभावेन अपना समर्पण जैन धर्म की सेवा के लिए कर दिया।
करुणा तथा आदर्श के प्रतीक-मुखार जी स्वभाव से नवनीत से भी अधिक कोमल थे। दूसरों के कष्ट देखकर वे करुणा से विगलित हो जाते थे। उनके व्यक्तित्व में सिद्धान्त रक्षा हेतु कठोरता, मितव्ययिता एवं कर्तव्यपरायणता एक साथ समाहित थी। नारिकेल सम व्यक्तित्व के धनी निश्चयतः आप एक कर्मयोगी थे।
उनके भीतर अक्खड़ता एवं निर्भीकता दर्शनीय थी। इस युग पुरुष को ये दोनों गुण, हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी और युगपुरुष निराला से प्राप्त हुए थे। आपने लेखन, सम्पादन और कवित्वप्रणयन द्वारा माँ भारती के भण्डार को समृद्ध किया
अपूर्व साहस के धनी-पं. जी अत्यन्त सहिष्णु व्यक्ति थे, आप श्रम करने में जितना अधिक दक्ष थे, उतने ही विरोधियों का विरोध सहन करने में। 'ग्रन्थ परीक्षा' के विरोध में पोपों ने उन्हें पापी, धर्म व आर्ष विरोधी कहा, पर वे अपने कार्यों और विचारों से अडिग बने रहे। उनके इस साहस के लिए कहा जा सकता है