________________
प. जुगलकिशोर मुख्तार "युगंवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
79
पाँचवीं कक्षा तक संस्कृत, अंग्रेजी की शिक्षा भी आपने सरसावा में प्राप्त की। फिर सहारनपुर सरकारी स्कूल में नौवीं कक्षा तक अध्ययन किया तथा इन्ट्रेंस की परीक्षा प्राइवेट रूप में दी।
स्कूल छोड़ने की भी आपकी एक कहानी है। वह कहानी यह है कि आप प्रतिदिन जैन शास्त्रों का स्वाध्याय करते थे। छात्रावास के जिस कमरे में आप निवास करते थे, उस कमरे के ऊपर यह लिख दिया गया था- "None is alloud to enter with shoes" एक दिन एक मुसलमान छात्र जूता पहने हुए, इनके इस कमरे में मना करने पर भी चला आया। निर्भीक जुगलकिशोर ने उसे धक्के देकर कमरे से बाहर निला दिया। उस छात्र ने अपने साथ किये गये इस अभद्र व्यवहार के सम्बन्ध में अपना प्रार्थना-पत्र प्रधानाध्यापक को दिया। प्रधानाध्यापक ने मुसलमान छात्र का पक्ष लेकर जुगलकिशोर के ऊपर आर्थिक दण्ड का निर्णय सुनाया। स्वाभिमानी जुगल किशोर इस घटना से विचलित हो गया और उसने स्कूल से अपना नाम कटाकर प्राइवेट परीक्षा दी।
ऐसे दृढ़ विचारों के संजोए, जब लेखनी साहित्य साधना के लिये बढ़ी तो सहज में ज्ञानामृत की वर्षा होने लगी। सरिता का प्रवाह उद्धाम वेग से फूट पड़ा। मनुष्य की सफलता का परिचायक है उसका साहस, लगन ।
जहाँ लगन है वहाँ पुरुषार्थ है। जिन्हें कुछ कर गुजरने की साध होती है वे कोई बहाना नहीं बनाते क्योंकि गुलाब के फूल काँटों में ही शोभा पाते हैं। पं. युगवीर जी के जीवन में न जाने कितने उतार चढ़ाव आये, पर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जीवन के शैशव में ही आपकी अन्तः ज्योति ने यह स्पष्ट देख लिया था कि परतन्त्र भारत के धर्म के दुर्भाग्य का कारण अविद्या, असंगठन और मान्य आचार्यों के विचारों के प्रति उपेक्षा भाव है। ऐसे पारदर्शी
गुणात्मक व्यक्तित्व के धनी 'युगवीर' के जीवन को कविता और गवेषणात्मक निबन्धों की ओर मोड़ने का श्रेय भी उनके जीवन में घटित एक घटना को है। 1899 ई. के आस-पास जब वे पाँचवीं कक्षा के छात्र थे। उस समय घर में मंगल बधाई गाये जाने का अवसर था । एकत्रित हुई विशिष्ट