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110 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements मां है - मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रह्मचर्य की। मां के आते ही बेटे खुद ललक आये हैं, उसकी गोद में। इनके साथ खेलिये और इनकी मां को प्रणाम कीजिये। 1
पंचम पद में (मैत्री भाव. . परिणति हो जावे) कवि ने एक शुद्ध/आदर्श नागरिक बनने के लिये प्राणिमात्र के प्रति मैत्री, दीन-दुखियों के प्रति दया, एवं दुर्जनों/दुष्टो के प्रति साम्य भाव रखने की कामना की है। "यहाँ आपके भीतर करुणा का झरना सौ-सौ धाराओं में खुल गया है, और आपको विश्व सखा बना रहा है।" 12
षष्टम पद में (गुणी जनों को न दोषों पर जावे) कवि के कृतज्ञता और गुणग्राहकता के भावों का प्रस्फुटन हुआ है। "आप कृतज्ञ हैं उन सबके जिन्होंने आपके जीवन को सेवा और साधना का अमृत चखाया है। आप गुण, गुणी और गुणवत्ता के चरणो मे आ बैठे हैं- इस छन्द में" 13
सप्तम् पद में (कोई बुरा कहो डिगने पावे) कवि युवीर "न्यायमार्ग, पर चलने को दृढता से सकल्पित हैं।" यहाँ न भय, न आतंक, न मरण है, न जरण। यदि कुछ है तो वह है स्वयं की शरण। न्याय और अन्याय का फर्क यहाँ स्पष्ट हुआ है एव आपने सकल्प कर लिया है कि अपने और अन्यों के साथ आप न्यायपूर्ण सलूक करेंगे जो सर्वसम्मत/लोक सम्मत है, विवेक की कसौटी पर खरा है। 14
अष्टम् पद में (होकर सुख में ... . दिखलावे) कवि ने सुखदुःख में साम्यभाव रखने, अभय होने एवं इष्ट वियोग तथा अनिष्ट संयोग में सहनशील रहने के भाव प्रकट किये हैं। "इसमें आपके रोएं-रोएं में अभय, समत्व और सहिष्णुता की हरी-भरी फसल थिरकने लगी है। आप स्वाधीन हुए हैं एवं आपका चित्त अविचल/अभान्त है अध्यात्म के मार्ग में।" 15
__ नवम् छन्द में (सुखी रहे सब .. ...........फल सब पावे) कवि सब जीवों के सुखी रहने, बैर पाप-अभिमान छोडने और धर्म मार्ग पर चलकर मानव जन्म सफल बनाने की मंगल भावना करता है।