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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements संस्थापक तथा सम्पादक के रूप में- आपने सर्वप्रथम जैन गजट के सम्पादक का भार ग्रहण कर अहिंसा और अनेकान्त की शंख ध्वनि द्वारा समाज का परिष्कार किया। जैन हितैषी का भी 1931 तक सम्पादन करते रहे । संस्थापक के रूप मे विभिन्न संस्थाओं के संस्थापक रहे। 21 अप्रैल 1929 में आपने अनेकांत का सम्पादन कार्य प्रारम्भ किया। अनेकांत की सम्पादित नीति जन रुचि की नहीं जनहित की थी। इसकी स्पष्ट झलक अन्तिम 5 दोहों में देखा जा सकता है।
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शोधन- मथन विरोध का, हुआ करे अविराम । प्रेम पगे रल मिल सभी करें कर्म निष्काम ॥
राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत-प्रोत आपका कार्य क्षेत्र मात्र जैन इतिहास और समाज तक ही सीमित न था, किन्तु उनके कार्यों का विस्तार राष्ट्र के कार्यों तक हो चुका था । खादी पहनना, चरखा कातना आदि उनके नित्य नियम में सम्मिलित था। जब प्रथमबार महात्मागाँधी गिरफ्तार हुए तो मुख्तार साहब ने नियम ग्रहण किया कि जब तक गाँधी जी कारागार से मुक्त न होंगे, तब तक चरखा खते बिना भोजन ग्रहण नही करूंगा। सत्याग्रह आन्दोलन में जो भी भाग लेता था आप यथाशक्ति उनके परिवार वालों की तन, मन, धन से मदद करते थे ।
दिल्ली में समन्तभद्राश्रम की स्थापना कर विद्वानों को संगठित कर पुरातत्व वाक्य सूची, लक्षणावली जैसे कार्यों को संकलन व सम्पादन कर, इस आश्रम के पीठाध्यक्ष साथ ही वरिष्ठ निदेशक के पद को मुख्तार जी ने सुशोभित किया। फिर यह 'समन्तभद्राश्रम' वीर सेवा मन्दिर से परिवर्तित हो दिल्ली से सरसावा चला गया।
'करत-करत अभ्यास के जड़मति होय सुजान' उक्ति को सार्थक करता हुआ धीरे-धीरे साहित्य साधना का यह मन्दिर छोटा सा शोध प्रतिष्ठान बन गया। जिसमें न्यायतीर्थ पं. दरवारीलाल कोठिया, पं. परमानन्द शास्त्री, पं. ताराचन्द न्यायतीर्थ, पं. शंकरलाल न्यायतीर्थ आदि शोधार्थी के रूप में वाड्मय का अनुसंधान करते थे ।