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युगवीर जी अमर कृति - मेरी भावना
___ पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ, जयपुर
सरसावा के संत आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार का नाम जैन साहित्यजगत में कौन नहीं जानता। ये साहित्य जगत के एक चमकते हुए सितारे हैं। उन्होंने अपना जीवन यद्यपि मुख्तारकारी से प्रारम्भ किया, किन्तु कभी असत्य व अन्याय का पक्ष नहीं लिया । मुख्तार साहब एक समाज सुधारक क्रांतिकारी युग पुरुष कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को जड़ से उखाड़ने वाले निर्भीक और निडर व्यक्तित्व के धनी थे। उनका जीवन तपे हुए सोने के समान निखरा हुआ था। वे सफल समालोचक, निष्ठावान् दृढ़ श्रद्धानी एवं अपनी बात के पक्के थे। वे सहृदयी उदार नारियल के समान ऊपर से कठोर एवं अन्दर से कोमल थे। धर्म, समाज, साहित्य एवं राष्ट्र के प्रति पूर्ण समर्पित थे। वे सफल पत्रकार, निबन्धकार तथा समीक्षक के साथ-साथ अच्छे कवि भी थे। उनकी अमर कृति 'मेरी भावना' युगवीर अर्थात् 'जुगलकिशोर' के नाम को सार्थक करती है। आज मुख्तार साहब नहीं हैं किन्तु 'मेरी भावना' ने उनके नाम को अमर कर दिया है। मेरी भावना का मेरे मानस पटल पर ऐसा प्रभाव पड़ा है कि जब से मैने होश संभाला है इसका नित्य प्रति पाठ करता हूं। यह एक राष्ट्रीय कविता है, जिसमें विश्व मैत्री, कृतज्ञता, न्यायप्रियता, सहनशीलता, समताभाव, नैतिकता, देशोद्धार आदि विचारों की प्रधानता है।
प्रस्तुत निबंध में मेरी भावना पर ही विशेष ध्यान आकर्षित करना है।
मेरी भावना में कवि ने गागर में सागर भर दिया है। सारे सिद्धांत ग्रंथों, पुराणों एवं आगम का सार काव्य रुप में प्रस्तुत किया है।
- विवेच्य मेरी भावना में 11 पद्य हैं जो सभी पठनीय एवं माननीय हैं। पहिले पद्य में कवि ने अपने इष्टदेव के प्रति भक्ति प्रकट करते हुए कहा है कि मेरा तो केवल वही आराध्य है जो वीतरागी हो सर्वज्ञ हो, मोक्ष-मार्ग का