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Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugvoer" Personality and Achievements
मोक्षमार्ग में वस्तु-स्वरुप के विचार की महिमा पं. बनारसीदास ने समयसार नाटक में निम्न रुप से व्यक्त की है
"वस्तु-विचारत ध्यानतें मन पावे विश्राम रस स्वादत सुख ऊपजे अनुभव याको नाम अनुभव चिंतामणिरत्न, अनुभव है रसकूप
अनुभव मारग मोक्ष का, अनुभव मोक्ष स्वरुप" स्व-पर कल्याण कारक आदर्श नागरिक संहिता
मेरी भावना में पद तीन के उत्तरार्द्ध से पद 8 तक मानव व्यवहार की स्व-पर कल्याणकारी आदर्श नागरिक संहिता की भावना है जो जीवन में अनुकरणीय है, उपादेय है।
किसी जीव को पीड़ित न करूं और झूठ न बोलूं। संतोषरूपी अमृत का पान करते हुए किसी के धन एवं पर-स्त्री पर मोहित न होऊँ (पद - 3) गर्व
और क्रोध न करूँ दूसरों की प्रगति पर ईर्ष्या न करूँ। निष्कपट सत्य व्यवहार करूँ। यथाशक्य दूसरों का उपकार करूँ (पद - 4)। सभी जीवों पर मैं मैत्रीअनुकम्पा का भाव रहे। दीन-दुखी जीवों के दुख-निवारण हेतु हृदय में निरंतर करुणा रहे। दुर्जन-पापी जीवों पर साम्यभाव रखू और घृणा न करु (पद - 5)। गुणीजनों से प्रेम करु। उनके दोष न देखू और यथाशक्य सेवा करूं । परोपकारियों के प्रति कृतघ्न न बनूं और न उनका विरोध करुं (पद - 6)। मैं न्याय मार्ग पर चलूं। बुरा हो या भला, धन आये या जाये, मृत्यु अभी हो या लाख वर्ष बाद कितना ही भय या लालच मिले, किसी भी स्थिति में, न्याय मार्ग से विचलित नहीं होऊ (पद -7)। यह कर्तव्य बोध की पराकाष्ठा है,जो प्रजातंत्र की सफलता का सूत्र है। न्याय च्युत राज्य-व्यवस्था संत्रासदायी होती है जो अशांति को जन्म देती है।
___ सुख में प्रफुल्लित और दुख में भयभीत न होऊ। पर्वत-नदी आदि से भयभीत न होऊं। इष्ट-वियोग तथा अनिष्ट संयोग में सहनशीलता/समत्व भाव रखू। यही भावना निरंतर बनी रहे (पद - 8)। मोह-रहित स्थिति में उक्त आचरण से कर्म बंध रुकेगा और कर्ममिर्जरा होगी।