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मेरी भावना : एक समीक्षात्मक अध्ययन
लालचन्द्र जैन 'राकेश' गंजबासौदा (म. प्र.)
साहित्य महारथी, वाङ्मयाचार्य, ज्ञानतपस्वी, सरस्वती के वरद पुत्र पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार "युगवीर" भारत की महान् विभूतियों में से एक थे। आपका जन्म सन. 1877 में हुआ था, आप सर्वतोमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे। आप उच्च कोटि के निबन्धकार, इतिहासकार, व्याख्याकार, संस्मरण लेखक एवं कवि थे। आपकी इन सब विशेषताओं को लक्ष्यकर "डॉ. ज्योति प्रसाद जी ने आपको साहित्य का भीष्मपितामह" कहा है। श्री डॉ नेमिचन्द्र जी ज्योतिषाचार्य को उक्त कथन से भी संतुष्टि नहीं हुई तो उन्होंने कथन को और अधिक प्रभावक बनाते हुए कहा कि "मैं इस वाक्य में इतना और भी जोड़ देना चाहता हूँ कि वे साहित्य के पार्थ हैं, जिन्होंने अपने वाणी से भीष्मपितामह को भी जीत लिया था।" "संक्षेप, श्री पं जुगलकिशोर जी मुख्तार "युगवीर" ऐसे लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार थे, जिनकी कीर्तिकौमुदी युग-युगान्तरों तक हृदय-कुमुदों को आनंदित करती रहेगी।"
__ यद्यपि श्री मुखार साहब ने साहित्य की विविध विधाओं पर साहित्यकार की लेखनी चलाई है तथा उन्होंने सर्वत्र सफलता एवं प्रशंसा भी अर्जित की है तथापि "श्री आचार्य "युगवीर" मेरी दृष्टि में मूलतः कवि हैं। इसके बाद ही उन्हें निबंधकार, आलोचक या इतिहासकार कहा जा सकता है। उनकी काव्य रचनाओं का संग्रह "युगभारती" के नाम से प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में भाषा की दृष्टि से दो प्रकार की कवितायें हैं - संस्कृत और हिन्दी। संस्कृत वाग्विलास खंड में कुल 10 कवितायें हैं। हिन्दी कविताओं में अनेक कवितायें विशेष भावपूर्ण हैं, मेरी भावना उनमें से एक है। कवि ने इसकी रचना 1916 में की थी।