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व्यक्तित्व एवं कृतित्व
श्रीमती माधुरी जैन ज्योति', जयपुर
जिनवाणी के पंथ पर, संसार में चलता है कोई-कोई। मोक्ष मंजिल पाने के लिए, बढ़ता है कोई-कोई॥ सब प्रवीण हैं संसार की बातें करने में मगर । श्री 'युगवीर की तरह, साहित्य साधना करता है कोई-कोई ।'
प्राचीन काल से ही भारत वसुन्धरा जैन मनीषियों से सुशोभित रहीं हैं। इस पृथ्वीतल पर यदि कोई ऐसा देश है, जो मंगलमयी पुण्यभूमि कहलाने का अधिकारी है, जहाँ आत्मोन्मुखी प्रत्येक आत्मा को अपना अन्तिम लक्ष्य प्राप्त करने के लिये पहुंचना अनिवार्य है, जहाँ मानवता ने ऋजुता, उदारता, शुचिता एवं शान्ति का चरम शिखर स्पर्श किया हो तथा इससे भी आगे बढ़कर जो अन्तर्दृष्टि एवम् आध्यात्मिकता का घर हो तो वह है भारत-भूमि।
यह वही पुरातन भूमि है जहाँ, ज्ञान ने अन्य देशों में जाने से पूर्व अपनी आवास भूमि बनायी थी। जिसे महानतम ऋषियों व मनीषियों की चरण रज निरन्तर पवित्र करती रही है। इसी श्रृंखला में अद्वितीय प्रतिभा के धनी, मनस्वी व्यक्ति का रूप संजोये, हिमालय जैसा उन्नत और प्रशान्त महासागर जैसा गम्भीर व्यक्तित्व समेटे, निन्दा एवं प्रशंसारूप प्रचण्ड पवन के झाकों से अपने कर्तव्य पथ से विचलित न होने वाले, वाङ्मय एवं समाज के उत्थान की भावना से परिपूर्ण, ऐसे 'युगवीर' को जन्म देने का (सौभाग्य) श्रेय सरसावा की पावन भूमि को प्राप्त हुआ।
सहारनपुर जिले के सरसावा कस्बे में मार्ग शीर्ष शुक्ला एकादशी विक्रम सं. 1934 को सन्ध्या काल में माता भूई-देवी की कुक्षि से देदीप्यमान नक्षत्र के समान, इस धरा पर अवतरित हुए।