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पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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ज्ञान-गुलाल पास नहिं श्रद्धा-रंग न समता-रोली है ! नहीं प्रेम- पिचकारी करमें, केशर शान्ति न बोली !! स्याद्वादी सुमृदंग बजे नहिं, नहीं मधुर रस बोली है ! कैसे पागल बने हो चेतन! कहते 'होली होली है !! ध्यान - अग्नि प्रज्जवलित हुई नहिं, कर्मे धन न जलाया है ! असद्भाव का धुआँ उड़ा नहिं सिद्धस्वरुप न पाया है !! भीगी नहीं जरा भी देखो, स्वानुभूति की चोली है! पाप-धूलि नहिं उड़ी, कहो फिर कैसे 'होली-होली है' !!
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मुख्तार सा. हिन्दी के समान संस्कृत काव्य रचना में भी निपुण थे । युगवीर भारती में उनकी ये दस कवितायें संकलित हैं
१. वीरजिनस्तोत्र २. समन्तभद्र स्तोत्र ३. अमृतचन्द्र सूरि-स्तुति ४. दीया द्रव्यपूजा ५. जैनादर्श, ६. अनेकान्त जयघोष ७. स्तुति विद्या-प्रशंसा ८. सार्थक जीवन ९. लोक में सुखी १०. वेश्यानृत्य स्तोत्र । शीर्षक इसी प्रकार हिन्दी में हैं, किन्तु पद्यरचना संस्कृत में है। उदाहरणार्थ मदीया द्रव्य पूजा का एक पद्य देखिए
नीरं कच्छप-मीन- भेक कलितं तज्जन्म - मृत्याकुलम् । वत्सोच्छिष्टमिदं पयश्च कुसुमं घृतं सदा षट्पदैः । मिष्टान्नं च फलं च नाऽत्र घटितं यन्मक्षिका स्पर्शितम् तत्किं देव! समर्पयेऽहमिति मच्चित्तं तु दोलायते ॥
इस प्रकार मुख्तार सा. की काव्यमनीषा भावनामयी संस्कारमयी, हृदयहारिणी, चेतश्चमत्कारी और सौन्दर्यवती है, जो काव्यरस से ओतप्रोत होने के साथ-साथ प्रेरणा प्रदायिनी भी है।