________________
Pandit Jugal Kishor Mukhtar Yugvoer" Personality and Achievements
-
-
-
68
आयुकर्म में पीड़ित हुआ प्राणी यदि अपने आपको स्थिर मानता है तो यह उसका अज्ञान है
यम से अतिशय पीड़ित अपनी आयु सभी बन जानो, दिन हैं गुरुतर खंड उसी के, यह निश्चय ठर आनो। उनको नित निज सन्मुख खिरते लखकर भी जो प्राणी, अपने को स्थिर मान रहा है, वह क्यों नहिं अज्ञानी॥ जैनियों को अपने पूर्वजों की याद दिलाते हुए मुख्तार सा. कहते हैंपूर्वज हमारे कौन थे? वे कृत्य क्या-क्या कर गये? किन-किन उपायों से कठिन भव-सिन्धु को भी तर गए? रखते थे कितना प्रेम वे निजधर्म देश समाज से? पर-हित में क्यों संलग्न थे, मतलब न था कुछ स्वार्थ से?
विधवाओं के सम्बोधित करते हुए मुख्तार सा कहते हैं कि शोक करना अध्यात्म के क्षेत्र में पाप का बीज बोना है। इसका फल आगे अनेक दुःखों का संगम होना है। शोक से कोई लाभ नहीं होता है। शोक करना अकर्मण्य बन जाना है। जो व्यक्ति शोक करता है, वह आत्मलाभ से वंचित होकर पीछे पछताता है। पापरूपी वृक्ष के दो फल हैं - 1. इष्ट वियोग और 1. अनिष्ट संयोग। इस पाप के फल को जो नहीं खाता है और पापरूपी वृक्ष का बीज जला देता है, वह इस लोक और पर लोक में सुख प्राप्त करता है। अत: पति वियोग के दुःख में जलकर पाप कमाना अच्छा नहीं है, किन्तु अच्छा यही है कि अपने योग को स्व-पर हित साधन में लगायें। जो व्यक्ति स्वार्थी हैं, वे दया नहीं करेंगे। उनसे दया की अभिलाषा छोड़ तुम स्वावलम्बी बनो और अपनी आशा पूर्ण करो। तुम सावधान होकर अपना बल बढ़ाओ और समाज का उत्थान करो। इस नीति पर सदैव ध्यान करो कि दैव दुर्बलों का घातक है। अन्त में कवि विवेक जागृत करने का उपदेश देता है।
हो विवेक जागृत भारत में इसका यत्न महान करो। अज्ञ जगत को उसके दुःख दारिद्रय आदि का ज्ञान करो।