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५ जुगलकिशोर मुखबार "कुगधीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व स्वयं अपने ही हाथों करते थे, कोई सहायक नहीं था। अंतिम दिनों में वे वर्तमान वीर सेवा मंदिर भवन की इतनी ऊँचाई की सीढ़ियाँ उतरकर मंदिर जाते और अपनी बहिन जयवंती के यहां भोजन कर उतनी ही सीढ़ियाँ चढ़कर वी.से.मं. जा विराजते। जब उनकी शक्ति क्षीण होने लगी और यह रोज-रोज उतरा-चढ़ी से दुखी हो गये तो एटा में अपने भतीजे श्रीचंद जी के यहां चले गये और लगभग ९० वर्ष की आयु में दिवंगत हो गये।।
मुख्तार सा. की कृतियों का आंकलन बड़ा कठिन लगता है। उन्होंने अन्य विद्वानों की भांति अपनी कृतियों की Rilography तैयार नहीं की, फलतः उनके संपूर्ण साहित्य सागर का आंकलन अब कठिन सा लगता है। उनके क्रान्तिकारी एवं समाज सुधारक आलेखों का संकलन 'युगवीर निबंधावली' शीर्षक से प्रकाशित कर वी.से.मं. ट्रस्ट ने बड़ा ही उपयोगी कार्य किया है पर अब वह ग्रंथ अलभ्य है, यह कई भागों में छपा है "पुरात जैन वाक्य सूची" शीर्षक महान् ग्रंथ कोष रूप में तैयार करना, यह मुख्तार सा. जैसे विद्वद्वरेण्य ही कर सकते थे, इसमें प्राकृत भाषा के 64 ग्रंथों और 48 टीकाओं से उद्धृत लगभग 25 हजार से अधिक पधवाक्यों की अनुक्रमणिका है। इसकी शोध प्रस्तावना और प्रो. कालिदास नाग के प्राक्कथन तथा डॉ. ए.एन. उपाध्याय की भूमिका से ग्रंथ का मणिकांचन संयोग बन गया है। इस तरह का महत्वपूर्ण गंथ लक्षणावली' है जो अनुसंधित्सुओं के लिए बड़ा ही उपयोगी है, स्वामी समन्तभद्र पर लिखा उनका शोधपूर्ण ग्रंथ इतिहास की अनेकों गुत्थियों को सुलझाने में समर्थ है, स्वामी समन्तभद्र की सभी कृतियों का अनुवाद, आलेकन एवं महत्वपूर्ण शोध 'परक' प्रस्तावनाओं ने उनकी गरिमा और वैदुष्य को प्रमाणित किया।"रत्नकरण्डश्रावकाचार" की विस्तृत प्रस्तावना, पढ़कर तो ऐसा लगता है कि स्वामी समन्तभद्र मुख्तार सा. के रोम-रोम में समाये हुए हैं। संस्कृत प्रशस्तिसंग्रह प्रथम भाग में अनेकों अनुपलब्ध संस्कृत जैन ग्रंथों की प्रशस्तियां संकलित कर उनमें स्थित राज्य, श्रावक, आचार्य, ग्राम नगर आदि की सूचियां शोधकों को बड़ी ही सहायक होती है। "युक्यनुशासन" और "समीचीन धर्मशास्त्र" जैसे ग्रंथों का अनुवाद तो किया ही है, उनकी विस्तृत शोध पूर्ण प्रस्तावनाएं बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं।