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पं.जुगलकिशोर मुख्तार "मुगवीर" व्यजिव एवं कृतित्व हो सकेगा इसकी सम्भावना क्षीण प्रायः ही है क्योंकि आज प्राच्य संस्थाओं को संचालित करने की अपेक्षा युगानुरूप व्यवसायीकरण की प्रवृत्ति हावी है। प्रातःस्मरणीय पू.वर्णी जी द्वारा सुस्थापित प्राच्य संस्थायें मृत प्राय: है उनकी ओर कदाचित् ही लोगों की दृष्टि जाती है। ऐसी स्थिति में सामाजिक एवं धार्मिक शिक्षण कान्ति के प्रतीक इन महत्वपूर्ण केन्द्रों के नष्ट हो जाने पर 21 वीं शताब्दी निश्चित रूप में रिक्तता का अनुभव करेगी। संस्था संचालन में मुख्तार सा. की कालजयी दृष्टि थी उनकी धारणा थी कि सामाजिक सम्पत्ति की सुरक्षा व्यक्तिगत सम्पत्ति की सुरक्षा से भी अधिक महत्वपूर्ण है। व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का यथेच्छा उपयोग और नष्ट तक कर सकता है परन्तु सामाजिक सम्पत्ति के कण मात्र को भी नष्ट करना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इस धारणा के ठीक विपरीत आज सामाजिक सम्पत्ति की सुरक्षा करने की बात तो दूर उसके नष्ट होने की प्रतीक्षा की जाती है या उस पर अपना स्वत्व स्थापित करने के लिए साम दाम दण्ड भेद की कुचेष्ठायें की जा रही हैं। सामाजिक दायित्व की भावना का प्रायः अभाव देखा जा रहा है और व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति का भाव चरमोत्कर्ष पर है। यदि ऐसे में दृष्टि नहीं बदली तो सामाजिक संस्थाओं का भविष्य निश्चित ही अन्धकारमय है या तो वे व्यावसायिक केन्द्र बन जायेंगे या कालकवलित हो जायेंगी। 'युगवीर'
मुख्तार सा. कवि जगत में युगवीर नाम से जाने जाते हैं। उनकी मेरी भावना समग्र रुप में युग चिन्तन का प्रतिनिधित्व करती है। समता, सहिष्णुता, मैत्री, वात्सल्य, करुणा, निर्भीकता जैसे उदात्त गुणों का अभिव्यक्त करती मेरी भावना मात्र युगवीर मुख्तार सा. की वैयक्तिक भावना ही नहीं है वह तो समग्रतः सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संवेदनाओं को व्यक्त करती हुई अजस्र शान्ति स्रोत स्वरुप है जिसकी धारा न कभी अवरुद्ध होने वाली है न ही उसे किसी विश्राम की आवश्यकता है।
आज समाज में एक नहीं अनेक वीर-वीरांगनायें हैं मिलन के रुप में अनेकानेक आयोजन हो रहे हैं, परन्तु परस्पर की दूरियाँ यथावत् है। इन आयोजनों में न कहीं वात्सल्य की भावना प्रस्फुटित होती दिखती है और न ही