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मुख्तार सा. की काव्य-मनीषा
डॉ. रमेशचन्द जैन, बिजनौर, उ.प्र.
जैन साहित्य के इतिहास के सूक्ष्म अन्वेषक सुप्रसिद्ध लेखक श्री जुगलकिशोर मुख्तार एक अच्छे कवि भी थे। उनकी छोटी सी कृति 'मेरी भावना' जन-जन का कण्ठहार बन गयी है। अभी तक उसकी लाखों प्रतियाँ छप गई हैं। अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती, मराठी, कन्नड़ आदि अनेक भाषाओं में उसके अनुवाद हो चुके हैं। अनेक विद्यालयों, कारखानों, बन्दीगृहों इत्यादि स्थानों पर प्रतिदिन उसका पाठ होता है। अनेक पत्र पत्रिकाओं में उनकी कवितायें प्रकाशित हुई हैं। 1920 ई. में आरा के श्री कुमार देवेन्द्र प्रसाद जी ने उनकी एक कविताओं का संकलन 'वीर पुष्पाञ्जलि' के नाम से प्रकाशित किया था, जिसमें कुल 13 कवितायें संगृहीत थीं। वह संग्रह अब अप्राप्य हैं। 1960 ई में अहिंसा मन्दिर प्रकाशन, दरियागंज, देहली से उनकी कविताओं का एक संकलन युगवीर भारती के नाम से प्रकाशित हुआ था, जिसका प्राक्कथन सुप्रसिद्ध हिन्दी लेखक पं. बनारसीदास चतुर्वेदी ने लिखा था। चतुर्वेदी जी ने अनुसार इन कविताओं में उनके (मुख्तार सा. के) सुसंस्कृत हृदय की उदार भावनायें पूरी मात्रा में विद्यमान हैं इस नवीन संग्रह में उन्होंने अपनी उन रचनाओं का संकलन किया था, जो उन्होंने सन् 1901 से लेकर 1956 के बीच प्रस्तुत की थीं। ये रचनायें 6 खण्डों में विभक्त की गई हैं। पहला खण्ड है - उपासना खण्ड, दूसरा भावना खण्ड, तीसरा सम्बोधन खण्ड, चौथा सत्प्रेरणा खण्ड, पांचवों संस्कृत वाग्विलास खण्ड और छठा प्रकीर्ण पुष्पोद्यान खण्ड । प्रारम्भ में वीर-वन्दना में वे कहते हैं -
शुद्धि-शक्ति की पराकाष्ठा को अतुलित प्रशान्ति के साथ। पा सत्तीर्घ प्रवृत्त किया जिन, नमूं वीरप्रभु साम्बलि-माष॥१॥ बीते मय उपसर्ग-परिषह जीते जिनने मद को मार, जीती पञ्चेन्द्रियां जिन्होंने मोक्रोधादि कथायें चार ।